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दखिनहा,गँवई ,पिछड़ा...
भुच्चड़, देहाती और गँवार
या सांस्कृतिक भाषा में कहें तो असभ्य.....
इन्हीं नामों से नवाजे गए
हमारे गाँव वाले...!
हमारे शहरों में और महानगरों में
देखकर गाँव वालों को
शहर वालों की......!
हँसने की आदत रही हमेशा...
सीधे-साधे गाँव वालों ने...!
इसे दिल पर नहीं लिया पर
दिमाग जरूर लगाया...
वह शहर आते-जाते रहे..
पर शहर की चकाचौंध से परे
सीखने और देखने.....?
शहरवालों की कामचोरी...
मक्कारी, कालाबाजारी या
यूँ कहें उनकी दुनियादारी...
इन्हीं शहर वालों से..
धीरे-धीरे सीख लिया कि
कैसे धोती उतार कर
नंगे बदन हो...!
पगड़ी बनाई और
बाँधी जा सकती है...
और...
गाँव-देश में अपनी पगड़ी
उछलने से बचाई जा सकती है...
इतना ही नहीं... उनसे
गाँव वालों ने सीखा
राजनीति और उसके दाँव पेंच
सीख लिया...
निर्बल असहायों का
करना आखेट....!
सीख लिए.....
विमर्श करना.....!.
समाज में व्यक्ति के...
हद,पद और कद पर
इस तरह मैं देख रहा हूँ
एक नई पहल....!
शहर चल पड़ा है गाँव कीओर....।
शहर चल पड़ा है गाँव की ओर...।
रचनाकार
जितेंद्र कुमार दुबे
पुलिस उपाधीक्षक जौनपुर
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