नया सबेरा नेटवर्क
(1)
अतिशय अकल्पनीय और....
अलग-थलग सी दुनिया देखकर
आपसे या,
इस समाज से इतर..
ईश्वर नामक अदृश्य सत्ता से..!
उल्टे सीधे प्रश्नों के माध्यम से..
ऊंची आवाज में तो नहीं लेकिन
एकाएक.....!
ऐसे ही एकदम चलताऊ
ओर-छोर से परे...
और बड़े ही औपचारिक ढंग से
अंतहीन वेदना के साथ
अः अः की पीड़ा का हल पूछा
(2)
कदाचित....!
खराब समय चल रहा है
गलतफहमी ना पालो
घड़ी विपदा की है...
चर्चा भी चारों तरफ है..
छप भी रहा है अखबार में
जगत व्यवहार ठप है..
झंझटों से मुक्ति को...!
टहल घूम मत करो,
ठहर जाओ घरों में...
डमरु बजाओ चाहे
ढपली....!
तकलीफ थोड़ी सह लेना, क्योंकि
थक गए हैं...सब व्यवस्थापक...
दर्प-दम्भ सबके चूर-चूर हैं,
धन का गुरुर भी नष्ट है..
पढ़ें अनपढ़ों सभी के..
फलीभूत हो रहे पाप है
बलवानों का बल क्षीण है,
भक्तों का टूटा विश्वास है,फिर भी
मन मस्तिष्क के धैर्य को....!
यदि तुम बचा ले गए...
रचना यह बचा ले जाओगे...
लपट यह बुझा ले जाओगे..
वरदान अभी भी संभव है..!
शक कोई नहीं है इसमें...
बस हद पार करो ना...
क्षमा प्रकृति से मांग लो ना...
त्रय ताप मिट जाएगा...
ज्ञान यह जान लो ना....!
रचनाकार जितेंद्र दुबे
पुलिस उपाधीक्षक जौनपुर
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