अपने अंदर तू नदी की धार माँग।
पथिक पाए छाया,प्यासा पाए पानी,
माँग उस खुदा से तो ऐसा वर माँग।
मत बेच आंसू, तू मत खरीद खुशी,
जहां खातिर उस रब से प्यार माँग।
नफरत नहीं, मोहब्बत का बीज बो,
काँटों के बदले गुलों का हार माँग।
आसमानों में कौन टिक पाता है,
माँग तो जमीं का लाड- प्यार माँग।
हवा की वाहवाही न कर ऐ! चराग़,
बस अपने जीने का अधिकार माँग।
देख! मशीनें ही वतन
नहीं चलातीं,
नहीं चलातीं,
माँग तो शासन से रोजगार माँग।
कौन जाने कौन पल आखिरी होगा,
माँग तो उस खुदा का दीदार माँग।
चिड़िया घोंसले में भूखी न सोए,
चूजों खातिर उसके अनार माँग।
मजदूरों के पांव में न पड़ें छाले,
उनकी भी ख्वाहिशों का संसार माँग।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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