बड़ा आदमी!
इनकम टैक्स नहीं भरता,है बड़ा आदमी,
बैंकों को वो लगाए चूना,है बड़ा आदमी।
दीमक की तरह चाटता है अपना ही देश,
उड़ता है रोज जहाज से, है बड़ा आदमी।
शराब और शबाब में बीतती उसकी रातें,
रहता हसीनों की बाजार,है बड़ा आदमी।
काला उसका ह्रदय,पहनता उजले कपड़े,
बिना बंदूक करता मर्डर, है बड़ा आदमी।
महंगी- महंगी कोठियों में करता निवास,
पंच सितारा में करे डिनर,है बड़ा आदमी।
संतरी और मंत्री हैं उसके खेल -खिलौने,
वो गरीबों का चूसे खून, है बड़ा आदमी।
कलियुग में ईमानदारों को कौन पूछता,
कहते हैं उसे बाहुबली, है बड़ा आदमी।
थक जाता है सुनकर अपनी जयजयकार,
लोग हिलाते अपनी दुम, है बड़ा आदमी।
पैरों तले जमीं, हाथों में आसमान है,
करता है खूब घोटाला, है बड़ा आदमी।
देखो टैक्स भरें हम और लुफ्त ले वो,
अंधा है क़ानून इसलिए है बड़ा आदमी।
रामकेश एम.यादव(कविसाहित्यकार),मुंबई
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