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वेदों से बढ़कर पूज्य है जो
गीता का जो अन्तर्मन है।
वह भक्ति ज्ञान वैराग्य सहित
तुलसी का मानस दर्शन है।
तीनों लोको में भाव सहित
जो गाथा गायी जाती है।
तुलसी के मानस की वाणी
कण कण में पायी जाती है।
ऋषि द्वीप पुरी पाताल दिवस
स्वर छन्द योग गिरि सागर है।
सब मानस के हैं सात काण्ड
जो पूर्ण जगत सचराचर है।
शास्त्रों का सकल ज्ञान इसमें
यह बाल्मीकि की वाणी है।
माधुर्य प्रेम वात्सल्य सहित
वनिता की नूतन साड़ी है।
जनजन की जो अनुरक्तिभक्ति
श्री राम शक्ति की पूजा है।
भव बंधन से जो मुक्त करे
मानस सा नहिं कोई दूजा है।
यह राम भक्ति की अचल अमल
पावन सुरसरि की धारा है
रसपान करे जो इस जल का
वह रघुनन्दन को प्यारा है।
श्री राम चरित मानस तुलसी
सम तीर्थ अयोध्या काशी है।
यह पंचवटी सी शीतल सुख
पय चित्रकूट गिरि वासी है।
शिव-शिवा समेत गणेश सदा
नित गायन जिनका करते है।
देती नित ज्ञान शारदा हैं
मारूत सुत रक्षा करते हैं।
यह सिद्धिबुद्धि अरू ज्ञान मिला
कविगुरु तुलसी की छाया है।
त्रय ताप नसावन मानस है
तुलसी ने शुचि हिय गाया है।।
रचनाकार- डॉ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
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