नया सबेरा नेटवर्क
खिंची क्या लकीर?
लेखा-जोखा चल रहा।
क्या अब तक कर पाए?
सामने जो आया।
जनता के मन भाए?
बारीकी से सब कुछ।
जनता रही निहार।।
बेड़ा पार लगाया।
या फंसे मझधार।।
होना ही था आकलन।
उभरी जो तस्वीर।।
जानना है हक।
खिंची क्या लकीर?
पेश हो रहे आंकड़े।
सामने सरकार।।
स्वाभाविक है खुद की।
हो जाए जयकार।।
कृष्णेन्द्र राय
Ad |
from NayaSabera.com
0 Comments