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ना जाने आज कैसा दौर आ गया है
दूर दूर रहने का माहौल आ गया है
जो साथ-साथ चलने में गुरूर समझते थे
अब दूर दूर रहनाहीं सुकून समझते हैं
प्रकृति ने अपना कैसा रुख अपनाया है
लोगों को प्रकृति का महत्व अब समझ आया है
लोग पागल थे अब तक जमी के पीछे
सांसों की कीमत ने आज पागल बनाया है
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा भी लग रहा बेगाना है
अब प्रकृति ही लोगों का सबसे बड़ा ठिकाना है
आज कीमत जरूरी वस्तु की समझ आई है
जिसके पीछे पागल थे दौलत भी काम ना आई है
प्रकृति का सौंदर्य बनाए रखना ही अब उपचार
खुद को बचाना है तो बंद करो प्रकृति का संहार।।
काजल सिंह बी.ए. द्वितीय वर्ष
तिलवारी, घनश्यामपुर, जौनपुर।
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