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सभी नारियों को सादर सप्रेम समर्पित
शक्ति हूं मैं नारी हूं
नहीं अबला न ही बेचारी हूं।
बरगलाओ न मुझे मैं पहचानती
हूं अपनी शक्ति को जानती हूं।
न जकड़ो मुझे मिथ्या आडंबरों में
मैं परमात्म की अनुपम कृति
उसी की शक्ति बसती है मेरे स्वरों में।
मैंअंश हूं उस अंशी का जिसने
रची है समूची सृष्टि ,उसी परमात्म
के दिव्य आलोक से आलोकित है
मेरा मन, नहीं शामिल मैं लोभियों,
पाखंडियों और पामरों में।
क्योंकि मानवी हूं मैं चिर मानवता ही
मेरा सजीला ख्वाब।
समझो न मुझको भार,ईश का
वरदान हूं नायाब।।
समझो नहीं भार हूं मैं
शक्ति हूं सिरजनहार हूं मैं।
अपनी आभा से प्रकाशित
कर रही हूं विश्व सारा।
मधुमयी हूं प्रेम से बढ़ती सदा ही
भेदती हूं मैं सदा ही नफरतों की सघन कारा।
स्वरचित मौलिक
डॉ मधु पाठक ,राजा श्रीकृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय जौनपुर उत्तर प्रदेश
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