सरोगेट से मां बनी महिला कर्मचारी भी मातृत्व अवकाश का लाभ पाने की हकदार - सरोगेट मां और प्राकृतिक मां में अंतर करना नारीत्व का अपमान - हाईकोर्ट | #NayaSaberaNetwork

सरोगेट से मां बनी महिला कर्मचारी भी मातृत्व अवकाश का लाभ पाने की हकदार - सरोगेट मां और प्राकृतिक मां में अंतर करना नारीत्व का अपमान - हाईकोर्ट | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
परोपकारी सरोगेसी का क्रियान्वयन और व्यवसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध के लिए सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2020 का धरातल पर क्रियान्वयन जरूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - वैश्विक स्तर पर भारत, नारीत्व सम्मान के लिए अग्रणी माना जाता है और हो भी क्यों ना क्योंकि भारत में महिलाओं को कार्यपालिका हर क्षेत्र में प्राथमिक स्थान देती है। बात अगर हम मातृत्व अवकाश की करें तो दिनांक 4 फरवरी 2021 को ही माननीय कर्नाटक हाईकोर्ट में केस क्रमांक 10677/2020 के अपने आदेश में सविंदात्मक कर्मचारियों को भी मातृत्व लाभ का हकदार बताया था और बात अगर हम सेरोगेट महिला मातृत्व अवकाश की करें तो पहले हमें सेरोगेट मातृत्व का अर्थ समझना होगा...सरोगेसी एक ऐसी तकनीक, माध्यम है। जिसके जरिए निसंतान लोग भी माता-पिता बन सकते हैं। सरोगेसी को आसान शब्दों में 'किराए की कोख' भी कहा जाता है। सरोगेसी में एक स्वस्थ महिला के शरीर में मेडिकल तकनीक से पुरूष के स्पर्म को इंजेक्ट किया जाता है। जिसके 9 महीने बाद एक स्वस्थ बच्चे का जन्म होता है। इस तकनीक में गर्भधारण करने वाली महिला का पूरे 9 महीने तक डॉक्टर्स अपनी देखरेख में रखते हैं। जिससे एक स्वस्थ बच्चे का जन्म हो सके।..ऐसी ही एक मां के संबंध में गुरुवार दिनांक 4 मार्च 2021 को माननीय हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट शिमला की दो जजों की एक बेंच जिसमें माननीय न्यायमूर्ति त्रिलोक सिंह चौहान तथा माननीय न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की एक बेंच ने सिविल रिट पिटीशन क्रमांक 4509/2020 याचिकाकर्ता बनाम स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश के पास आया।जिसमें दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के पश्चात माननीय बेंच ने 1 मार्च 2020 को मामला निर्णय के लिए सुरक्षित रखा था जिसका निर्णय 25 पृष्ठों और 16 पॉइंटों में, 4 मार्च 2021 को सुनाया गया। माननीय बेंच ने कहा,सरोगेट मदर महिला कर्मी भी मातृत्व अवकाश की हकदार...हिमांचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक व्यवस्था दी है कि सरोगेसी से मां बनी महिला कर्मचारी भी मातृत्व अवकाश की हकदार है। याचिका पर फैसला सुनाते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि मातृत्व अवकाश का अर्थ महिलाओं का सामाजिक न्याय सुनिश्चित करवाना है। मातृत्व और बचपन दोनों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। मातृत्व अवकाश देते वक्त न केवल माँ और बच्चे के स्वास्थ्य मुददो पर विचार किया जाता है, बल्कि दोनों के आपसी स्नेह का बंधन बनाने के लिए छुट्टी प्रदान की जाती है। सरोगेसी के जरिए बनी माँ और एक प्राकृतिक मां में भेदभाव करने से नारीत्व का अपमान होगा। बच्चे के जन्म पर मातृत्व कभी समाप्त नही होता। इसी कारण सरोगेसी के माध्यम से बच्चा पाने वाली मां को मातृत्व अवकाश से मना नही किया जा सकता है बेंच ने कहा कि एक सरोगेट मां भी सीसीएस (लीव) रूल्स, 1972 के नियम 43 (1) के तहत मातृत्व अवकाश का लाभ पाने की हकदार है। एक सरोगेट मां की याचिका पर सुनवाई में उक्त टिप्पण‌ियां की हैं। याचिका में सरोगेट मां के लिए भी मातृत्व अवकाश का लाभ पाने की मांग की गई थी। बेंच ने कहा, मातृत्व बच्चे के जन्म के साथ समाप्त नहीं होता है और अनुरोध के बाद मां बनी एक महिला को मातृत्व अवकाश देने से इनकार नहीं किया जा सकता है। जहां तक मातृत्व लाभ का संबंध है,एक महिला के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है, वह भी केवल इस आधार पर कि उसने गर्भ सरोगेसी के माध्यम से प्राप्त किया है। एक नवजात को दूसरों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता है, क्योंकि उसे पालन-पोषण की आवश्यकता है और यह सबसे महत्वपूर्ण अवधि है, जिसमें बच्चे को मां की देखभाल और ध्यान की आवश्यकता होती है याचिकाकर्ता कुल्लू जिले के एक सरकारी स्कूल में संविदा पर भाषा शिक्षक के रूप में कार्य करती है। सरोगेसी के माध्यम से उन्होंने 10 सितंबर, 2020 को एक बच्चे को जन्म दिया। जिसके बाद, स्कूल के प्रधानाचार्य से मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया, जिसने उस आवेदन को उपनिदेशक, उच्च शिक्षा, कुल्लू को भेज दिया और पूछा कि क्या याचिकाकर्ता सरोगेट मां होने के नाते मातृत्व अवकाश की हकदार है? हाईकोर्ट ने सरोगेसी के विषय पर आए फैसलों का विश्लेषण करते हुए, बेबी मंजू यामदा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (2008) 13 एससीसी 518 पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने पारंपरिक, गर्भावधि, परोपकारी और वाणिज्यिक सरोगेसी समेत, सरोगेसी के विभिन्न रूपों का अवलोकन किया था। मातृत्व अवकाश के लिए सीसीएस (लीव) रूल्स के नियम 43 का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा, एक बार, उत्तरदाता स्वीकार करते हैं कि बच्चा याचिकाकर्ता का है, तो वह उन छुट्ट‌ियों की हकदार है, जिन्हें नियमों के संदर्भ में ऐसे व्यक्तियों को दिया जाता है। उक्त नियमों का उद्देश्य बच्चे और माता-पिता के बीच की बॉन्डिंग के लिए उचि‌त है। मातृत्व अवकाश का उद्देश्य महिला और उसके बच्चे के पूर्ण और स्वस्थ रखरखाव के लिए मातृत्व की गरिमा की रक्षा करना है। मातृत्व अवकाश का उद्देश्य महिलाओं के लिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है। अनुच्छेद 42 के तहत संवैधानिक संवैधानिक आदेश का अवलोकन करते हुए, जिसके तहत कहा गया है कि राज्य मातृत्व राहत और कार्य के लिए मानवीय और उचित स्थितियों को सुरक्षित करने के लिए प्रावधान करेगा, बेंच ने कहा, यह महसूस हो कि उसे देखभाल की जरूरत है, तो वो चाइल्ड केयर लीव कालाभ उठाएं। यह अंतरराष्ट्रीय करार और संधियों के अनुरूप है, जिसमें भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है। इसलिए बेंच ने याचिका की अनुमति दी और प्रतिवादी अधिकारियों को सीसीएस (लीव) रूल्स,1972 के तहत याचिकाकर्ता को मातृत्व अवकाश स्वीकृत/अनुदान करने का निर्देश दिया।
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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