नया सबेरा नेटवर्क
रस्ते की धूप सदा खलती नहीं,
सियासत की दुकान सदा चलती नहीं।
हवा के पांव में तू कांटे मत धंसा,
बिन हवा के ये दुनिया बसती नहीं।
सच बोल,भले कोई सर कलम कर दे,
मक्कारों से दुनिया चलती नहीं।
घर चलाने के लिए तू बहा पसीना,
क्योंकि ख्वाब से गृहस्थी सजती नहीं।
मोहब्बत टिकेगी अगर सच्ची रहेगी,
जिस्म की मुलाक़ात से महकती नहीं।
बिगड़ी औलाद माँ-बाप को क्या जाने,
इस नाजुक डोर को वो समझती नहीं।
भीड़ में चलने से कुछ फायदा नहीं,
क्योंकि पहचान कुछ उससे बनती नहीं।
देते थे दुआयें ईमानदारी से जो ,
अबकी दुआ से खुशबू निकलती नहीं।
बूँद - बूँद से देखो! ये भरता है समुद्र,
बिना किनारा, कोई नदी बहती नहीं।
सच्चाई के कितने टुकड़े कर डालो,
लेकिन उसकी तासीर बदलती नहीं।
तुम चाँद पे जाओ, चाहे मंगल पर,
मेरी जुहू - चौपाटी वहाँ दिखती नहीं,
मेरे अल्फाजों की हिफाजत करना,
रोज - रोज सांस ये चलती नहीं।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार)मुंबई,
from NayaSabera.com
0 Comments