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लघुकथा
मोहन और सोहन गहरे दोस्त थे। मोहन कानून में पीएचडी था और विदेश में कार्यरत था। कोविड के कारण भारत आ गया था। सोहन 12वीं पास था और छोटी सी कंपनी में भारत में कार्यरत था। एक दिन मोहन अपने दोस्त सोहन के घर आया तो देखकर दंग रह गया कि, सोहन को पीले वस्त्र पहने थे और मस्तक पर हल्दी का पीला टीका लगा था और सामने मां सरस्वती देवी का स्वरूप रखा था। पूजा पाठ चल रहा था जन्मदिन केक सुशोभित था, मानो कोई धार्मिक यज्ञ हो रहा हो उत्सुकता वश डॉ मोहन ने पूछा, सोहन,यह क्या इतनी सारी तैयारी??कोई महायज्ञ है?? सोहन ने कहा, मित्र मोहन आज बसंत पंचमी है। मां सरस्वती का जन्मदिन है। और इसी दिन सिख गुरु गोविंद सिंह जी का भी जन्मदिन है सभी शिक्षाविद आज बड़ी पूजा अर्चना, संगम में ब्रह्ममुहूर्त में डुबकी लगाना, और उच्च ज्ञानवान बनाने की प्रार्थना करते हैं। मैंने मां सरस्वती की दीक्षा ली है 12वीं पास किया हूं। मां की कृपा से आज का दिन शुभ माना जाता है, आज पेड़ पौधों को भी नहीं काटा जाता और आज का पर्व ज्ञान व स्वरों की देवी मां सरस्वती को समर्पित है। यह देख और सुन मोहन लज्जाप्रद हो गया और कहा, मित्र मैं तो पीजी और पीएचडी किया हूं। विदेश में बड़े-बड़े पद पर हूं।जिस शिक्षा वंदिनी के बल पर सब कुछ हूं उसे ही भुला बैठा हूं। और मुझे इसके बारे में कुछ मालूम ही नहीं और सोहन के चरणों में गिर पड़ा, कहा मित्र तुम तो मुझसे भी बड़े ज्ञानी और शिक्षाविद हो तुम भले ही, 12वीं पास हो छोटा सा जॉब है पर तुम सच्चे शिक्षाविद हो
सीख -कितना भी बड़ा शिक्षाविद हो पर मां सरस्वती की वंदना और बसंतपंचमी को ज्ञान, शिक्षा दाईनी के रूप में अर्चना कर,क्षमा याचना करना चाहिए, जिससे ज्ञान में वृद्धि होती है
लेखक कर विशेषज्ञ, साहित्यकार, कानूनी लेखक चिंतक कवि एड किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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