शहद की चासनी सी वो बातें कहाँ गईं
सुलाए सोती नहीं थीं जो रातें कहां गईं
लगाकर पीठ से पीठ बैठी हुईं कहानियां
भरी गीतों से डोलियां बारातें कहां गईं
हवाओं के भी बचाकर कान फुसफुसातीं वे
सुनसान जगहें, अनहद मुलाकातें कहां गईं
किधर बैठी हैं जा कर जरा देखो तो दोस्तों
हंसी की दिखती ना कहीं सौगातें कहां गईं
दिनभर घूमा करती थीं जो संग-साथ हमारे
उछल कूद से भरी वे खुराफातें कहां गईं
डॉ. एमडी सिंह
पीरनगर, गाजीपुर उ.प्र. 233001
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