मुम्बई। जब एक भक्त सच्चे मन से भगवान की भक्ति करता है, तो भगवान उसे आशीर्वाद देने में कभी देर नहीं करते। भगवान की कृपा से ही जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। जब तक विश्वास और भक्ति सच्ची होती है, तब तक भगवान अपने भक्तों की सहायता करने में कभी पीछे नहीं हटते। यह पवित्र उद्गार प्रसिद्ध कथाकार देवकीनंदन महाराज ने नवी मुम्बई के खारघर स्थित कारपोरेट पार्क ग्राउंड में चल रही श्री भागवत कथा के दौरान व्यक्त किया।
कथा श्रवण से मन होता है निर्मल
महाराज ने कहा कि कथा श्रवण करने से मन निर्मल होता है। कथाएं हमें सही मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। कथा श्रवण से मन के अंदर की समस्त नकारात्मकता, अशांति और संकोच दूर होते हैं, और उसके स्थान पर प्रेम, आस्था, विश्वास और शांति का संचार होता है।
महाराज ने कहा कि कथा श्रवण करने से मन निर्मल होता है। कथाएं हमें सही मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। कथा श्रवण से मन के अंदर की समस्त नकारात्मकता, अशांति और संकोच दूर होते हैं, और उसके स्थान पर प्रेम, आस्था, विश्वास और शांति का संचार होता है।
12 ज्योतिर्लिंगों का जरूर करें दर्शन
देवकीनंदन महाराज ने कहा कि अगर मानव जीवन मिला है तो 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन जरूर करने चाहिए। ये 12 ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली रूप हैं, जो पूरे भारत में फैले हुए हैं। इन ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करने से न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि व्यक्ति के जीवन के सभी दुख-दर्द भी समाप्त हो जाते हैं।
देवकीनंदन महाराज ने कहा कि अगर मानव जीवन मिला है तो 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन जरूर करने चाहिए। ये 12 ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली रूप हैं, जो पूरे भारत में फैले हुए हैं। इन ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करने से न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि व्यक्ति के जीवन के सभी दुख-दर्द भी समाप्त हो जाते हैं।
मानव जीवन का आधार है धर्म
महाराज ने कहा कि धर्म मानव जीवन का आधार है, जो उसे सत्य, न्याय और सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। अपने धर्म की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है, क्योंकि धर्म ही वह आधार है जो समाज और व्यक्ति को एक मजबूत नैतिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
महाराज ने कहा कि धर्म मानव जीवन का आधार है, जो उसे सत्य, न्याय और सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। अपने धर्म की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है, क्योंकि धर्म ही वह आधार है जो समाज और व्यक्ति को एक मजबूत नैतिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
अहंकार मानव के पतन का कारण
"मै" की भावना, अर्थात् अहंकार, मानव के पतन का मुख्य कारण है। जब व्यक्ति "मै" के भाव में डूब जाता है, तो वह स्वयं को अन्य सभी से श्रेष्ठ समझने लगता है। यह भावना न केवल उसके आत्मिक विकास में बाधा उत्पन्न करती है, बल्कि उसे अपने मूल कर्तव्यों और आदर्शों से भी भटका देती है।
अहंकार व्यक्ति को विनम्रता और सहानुभूति से दूर ले जाता है, जिससे उसका समाज में सम्मान और विश्वास समाप्त हो जाता है। महाराज ने कहा कि नव वर्ष को धार्मिक आधार पर मनाया जाएगा। यह कथा 30 दिसम्बर तक निरन्तर चलेगी।
"मै" की भावना, अर्थात् अहंकार, मानव के पतन का मुख्य कारण है। जब व्यक्ति "मै" के भाव में डूब जाता है, तो वह स्वयं को अन्य सभी से श्रेष्ठ समझने लगता है। यह भावना न केवल उसके आत्मिक विकास में बाधा उत्पन्न करती है, बल्कि उसे अपने मूल कर्तव्यों और आदर्शों से भी भटका देती है।
अहंकार व्यक्ति को विनम्रता और सहानुभूति से दूर ले जाता है, जिससे उसका समाज में सम्मान और विश्वास समाप्त हो जाता है। महाराज ने कहा कि नव वर्ष को धार्मिक आधार पर मनाया जाएगा। यह कथा 30 दिसम्बर तक निरन्तर चलेगी।
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