नया सबेरा नेटवर्क
कलम रुक नहीं सकती !
लेखकों की हस्ती कभी मिट नहीं सकती,
कलमकारों के बिना दुनिया रह नहीं सकती।
तमाम काबिलियत के बोझ तले दबे हैं ये,
बिना इनके,गली की जुही महक नहीं सकती।
साहिल की रेत पर पनपती इनकी मोहब्बतें,
बसंत की मीठी कटार घायल कर नहीं सकती।
सोलहवें साल में लड़की बढ़ाती प्यार भरा कदम,
उसके प्यार की दुश्मन कलम बन नहीं सकती।
नजरों के ख़रीदारों की भी यहाँ कमी नहीं,
बिना आईना दिखाए कलम रुक नहीं सकती।
तन पर पड़ेगा मौत का जब चाबुक एक दिन,
मौत की मांग में सिंदूर भरे ये थम नहीं सकती।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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