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जनजातीय शिल्पकारों, कारीगरों और महिलाओं के उत्पादों के लिए पर्याप्त विपणन मार्ग तैयार करने रणनीतिक रोडमैप बनाना ज़रूरी
भारत की संस्कृति को मज़बूत करने में जनजातीय समाज का महत्वपूर्ण योगदान - जनजातीय लोगों के प्राकृतिक कौशल को निखारने, उनके आय के स्रोतों में सुधार करना ज़रूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारतीय संस्कृति में शिल्पकारों, भाषा, रीति-रिवाजों, कारीगरों, प्रथाओं परंपराओं, व्यंजनों इत्यादि अनेकउपलब्धियों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। जानकारों का कहना है कि यह संस्कृति 5 हज़ार ईसवी से भी पुरानी है। याने इस आधार पर हम कह सकते हैं कि हमारी संस्कृति सोलह सौ से भी अधिक वर्ष पुरानी है, जो कि आज की पीढ़ी के नवयुवक सुनेंगे तो हैरान रह जाएंगे। साथियों इस हमारी अणखुट संस्कृति, अनोखी परंपराओं मेंसे अनेक विलुप्त भी हो चुकी है और अनेक विलुप्तता की और भी हैं, जिन्हें हमें सभी को साथ मिलकर बचाना होगा। साथियों बात अगर हम जनजातीय समुदाय की करें तो भारतीय संस्कृति में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस समूह का हज़ारों वर्ष का गौरवशाली इतिहास, संस्कृति और उपलब्धियां रही है यही कारण है कि 15 नवंबर 2021 को बिरसा मुंडा के जयंती महोत्सव पर जनजातीय गौरव दिवस घोषित किया गया है जो तारीफ़ ए काबिल है, और पहला जनजातीय गौरव दिवस 15 नवंबर 2021 को सप्ताह भर तक महोत्सव के रूप में मनाया जाएगा। साथियों बात अगर हम अभी राष्ट्रपति भवन में 9 नवंबर 2021 को पदमश्री, पदमभूषण इत्यादि अवार्ड देने की करें तो हमने देखे कि एक 72 वर्ष उम्र की जनजातीय महिला पर सबकी नजरें टिकी थी। जनजातीय वेशभूषा में गले में, आदिवासी जीवन शैली की मालाएं, नंगे पैर, उन्हें राष्ट्रपति ने सम्मानित किया तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज उठा ऐसा हम सभ ने टीवी चैनलों पर देखा और हैरान रह गए थे!! यह है हमारें आज के गर्व का भारत !!! साथियों बात अगर हम जनजातीय गौरव दिवस, महोत्सव समारोह पर आज माननीय उपराष्ट्रपति महोदय द्वारा एक समारोह में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जनजातीय समुदायों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समुदायों ने बड़े पैमाने पर अपना योगदान दिया। देश के विभिन्न हिस्सों में उठे इन जनजातीय आंदोलनों ने कई लोगों को अन्यायपूर्ण ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने जनजातीय लोगों के गौरवशाली इतिहास, संस्कृति और उपलब्धियों के 75 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में 15 नवंबर, 2021 से शुरू किए गए सप्ताह भर के समारोहों पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। देश के नागरिकों से सप्ताह भर चलने वाले इन समारोहों में सक्रिय रूप से शामिल होने का आह्वान करते हुए, कहा, मैं सभी लोगों से आग्रह करूंगा कि वे इन समारोहों में सक्रिय रूप से शामिल हों और अनूठी जनजातीय सांस्कृतिक विरासत, स्वतंत्रता संग्राम,प्रथाओं अधिकारों, परंपराओं, व्यंजनों, स्वास्थ्य, शिक्षा और आजीविका में उनके योगदान से परिचित हों। जनजातीय समुदायों की विशिष्टता के बारे में बताते हुए, कहा, हमारे जनजातीय समुदायों को जो खास बनाता है वह ये है कि वे प्रकृति के साथ से गहराई से जुड़े हुए हैं और अपनी संस्कृति, भाषा, रीति रिवाजों और परंपराओं को कायम रखने में सफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि जनजातीय गौरव दिवस के माध्यम से जनजातीयों की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करने और भारतीय मूल्यों को बढ़ावा देने में उनके द्वारा किए प्रयासों की पहचान करने में भी मदद मिलेगी। साथियों बात अगर हम इस मौके पर आज माननीय पीएम के संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने कहा कि आज भारत अपना पहला जनजातीय गौरव दिवस मना रहा है। उन्होंने कहा, आजादी के बाद देश में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर पूरे देश के जनजातीय समाज की कला-संस्कृति, स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को गौरव के साथ याद किया जा रहा है, उन्हें सम्मान दिया जा रहा है। जनजातीय समाज के साथ अपने लंबे जुड़ाव को रेखांकित करते हुए पीएम ने उनके समृद्ध आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन की प्रशंसा की और कहा कि गीत एवं नृत्य सहित जनजातीय लोगों के हर सांस्कृतिक पहलू में जीवन का एक अद्भुत सबक है और उनसे सीखने के लिए बहुत कुछ है। उन्होंने कहा कि हाल ही में पद्म पुरस्कार दिए गए हैं। जनजातीय समाज से आने वाले पुरस्कार विजेता जब राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो दुनिया हैरान रह गई। उन्होंने आदिवासी और ग्रामीण समाज में काम करने वालों को देश का असली हीरा बताया। आज आदिवासी समुदाय के कारीगरों के उत्पादों का राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर प्रचार -प्रसार हो रहा है। आज 90 से अधिक वन उत्पादों को एमएसपी दिया जा रहा है, जबकि पहले केवल 8-10 फसलें ही इसके दायरे में शामिल थीं। ऐसे जिलों के लिए 150 से अधिक मेडिकल कॉलेज स्वीकृत किए गए हैं। 2,500 से अधिक वन धन विकास केंद्रों को 37 हज़ार से अधिक स्वयं सहायता समूहों से जोड़ा गया है, जिससे 7 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है। 20 लाख भूमि 'पट्टे' दिए गए हैं और जनजातीय युवाओं के कौशल एवं शिक्षा पर ध्यान दिया जा रहा है। पिछले 7 वर्षों में 9 नए आदिवासी अनुसंधान संस्थान तैयार किए गए हैं। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में मातृभाषा पर जोर देने से आदिवासी लोगों को मदद मिलेगी। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत ने पहला जनजातीय गौरव दिवस मनाया जो सराहनीय है, तथा जनजातीय शिल्पकारों, कारीगरों और महिलाओं के उत्पादन के लिए पर्याप्त विपणन मार्ग तैयार करने रणनीतिक रोडमैप बनाना ज़रूरी है। भारत की संस्कृति को मज़बूत करने में जनजातीय समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं एवं जनजातीय लोगों के प्राकृतिक कौशल को निखारने, उनके आय के स्त्रोतों में सुधार करना अत्यंत जरूरी है।
संकलनकर्ता- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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