वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक रिपोर्ट - भारत में भौगोलिक रूप से वायु प्रदूषण का उच्च स्तर बढ़ रहा - 9 साल तक घट सकती है 40 प्रतिशत भारतीयों की उम्र | #NayaSaberaNetwork

वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक रिपोर्ट - भारत में भौगोलिक रूप से वायु प्रदूषण का उच्च स्तर बढ़ रहा - 9 साल तक घट सकती है 40 प्रतिशत भारतीयों की उम्र | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
स्वच्छ वातावरण मानवीय जीवन का अभिन्न अंग - संरक्षण के लिए प्राकृतिक संसाधनों, जंगलों का दोहन रोकना तात्कालिक ज़रूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत सांस्कृतिक, आध्यात्मिकता और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर एक गॉड गिफ्टेड देश है। कुदरत ने जितने प्राकृतिक संसाधन भारत में दिए हैं, शायद ही विश्व में किसी अन्य देश में होंगे। इसलिए भारत इस प्राकृतिक उपलब्धियों से भरपूर विश्व प्रसिद्ध देश है।...साथियों बात अगर हम इन उपलब्धियों के बावजूद आज प्रदूषित पर्यावरण स्थितियों की करें तो इसके लिए हम मानवीय देह ही दोषी हैं, क्योंकि इतनी ख़ूबसूरत प्राकृतिक उपलब्धियों को तुच्छ करने और पाश्चात्य जीवनस्तर जीने की होड़ में हम जंगलों को समाप्त कर, प्राकृतिक संसाधनों का अवैध दोहन कर, बड़ी बड़ी बिल्डिंग और आलीशान परिवहन के संसाधन बनाने में व्यस्त हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण संबंधी विकृतियां पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं...। साथियों बात अगर आम 1 सितंबर 2021 को आई, अमेरिका की प्रतिष्ठित शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (ईपीआईसी) की एक रिपोर्ट की करें तो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के अध्ययन से पता चलता है कि अगर कोई व्यक्ति स्वच्छ हवा में सांस लेता है तो वह कितने समय तक जीवित रह सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि 2019 का प्रदूषण स्तर बना रहता है तो उत्तर भारत के निवासी जीवन प्रत्याशा के नौ साल से अधिक खोने की राह पर हैं क्योंकि यह क्षेत्र दुनिया में वायु प्रदूषण के सबसे चरम स्तर का सामना करता है। ईपीआईसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक सेंटर, पूर्व और उत्तर भारत में रहने वाले 48 करोड़ से ज्यादा लोग बहुत ज्‍यादा बढ़े हुए प्रदूषण के स्‍तर में जीवन जीने को मजबूर हैं। इन इलाकों में देश की राजधानी दिल्ली भी शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह चिंताजनक है कि वायु प्रदूषण का इतना ऊंचा स्तर समय के साथ और इलाकों में फैला है। रिपोर्ट ने महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश का उदाहरण देते हुए कहा कि अब इन राज्यों में भी वायु की गुणवत्ता काफी गंभीर रूप से गिर गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, अगर भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुरूप प्रदूषण कम किया जा सकता है, तो औसत जीवन प्रत्याशा 5.4 वर्ष बढ़ सकती है। ईपीआईसी का कहना है कि 2019 के दौरान भारत में हवा में प्रदूषणकारी सूक्ष्म कणों की मौजूदगी औसतन 70.3 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थी, जो दुनिया में सर्वाधिक और डब्ल्यूएचओ के 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से 7 गुना ज्यादा है। दुनिया भर में बढ़ता प्रदूषण बड़ी चिंता है, वहीं भारत में भी हालात विकराल होते जा रहे हैं। वायु प्रदूषण नई-नई बीमारियां पैदा करने के साथ ही उम्र भी घटा रहा है। अमेरिकी शोध में रिपोर्ट हैरान करने वाली सामने आई है। 1 सितंबर को जारी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में पॉल्यूशन की यही हालत रही तो 40 प्रतिशत भारतीयों की जीवन प्रत्याशा नौ साल से ज्यादा तक कम हो सकती है।...साथियों बात अगर हम ईपीआईसी द्वारा भारत में राष्ट्रीय स्वच्छ कार्यक्रम (एनसीएपी) की तारीफ की करें तो, खतरनाक प्रदूषण स्तरों पर लगाम लगाने के लिए 2019 में शुरू किए गए भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) की सराहना करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि, एनसीएपी लक्ष्यों को प्राप्त करने और बनाए रखने से देश की समग्र जीवन प्रत्याशा 1.7 साल और नई दिल्ली की 3.1 साल बढ़ जाएग। सरकारें गंभीर हैं, हर मोर्चे पर ठोस नीतियां जरूरी हैं। वायु प्रदूषण का सर्वाधिक असर दक्षिण एशिया में है। हालांकि क्षेत्र की सरकारें अब समस्या की गंभीरता समझ रही हैं। उसके निदान के लिए काम शुरू कर रही है। साफ हवा वह लंबी जिंदगी के लिए भारत का एनसीएपी वे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग का गठन महत्वपूर्ण कदम है। जीवाश्म ईंधन वैश्विक समस्या है।इसके लिए ठोस नीतियों की जरूरत है, जिसमें कोयले का इस्तेमाल कम करना, कार्बन डाइऑक्साइड रोकने को जंगलों का कम पढ़ना, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव प्रमुख कारण है। एनसीएपी का उद्देश्य औद्योगिक उत्सर्जन और व्‍हीकल एक्‍जास्‍ट में कटौती सुनिश्चित करके परिवहन ईंधन और बायोमास जलाने के लिए कड़े नियम पेश करके और धूल प्रदूषण को कम करके 2024 तक 102 सबसे अधिक प्रभावित शहरों में प्रदूषण को 20 से 30 फीसदी तककम करनाहै...। साथियों बात अगर हम 2020 और2021 के लॉकडाउन में वातावरण की करें तो इसमें वातावरण के स्वच्छता की मात्रा काफ़ी सकारात्मकता से बढ़ी थी और महानगरों में प्रदूषण गायब सा हो गया था, हालांकि सर्दियों में पंजाब और हरियाणा में जलाई परालीके कारण जहरीली हवा से जूझना पड़ा था और किसानों पर केस भी दाखिल किए गए थे...। साथियों बात अगर हम ईपीआईसी द्वारा तैयार वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक की करें तो ईपीआईसी द्वारा तैयार किया गया एर क्वालिटी लाइफ़ इंडेक्स ईपीआईसी के निदेशक द्वारा किए गए अग्रणी शोध पर आधारित है। इसमें मनुष्यों पर वायु प्रदूषण के एक्सपोजर और घटी जीवन संभाव्यता के बीच कार्य-कारण संबंध स्थापित किया गया है। इस विश्लेषण को प्रदूषण के अत्यंत स्थानीय मापों के परिणामों के साथ मिलाकर देखने पर पूरी दुनिया के समुदायों में वायु प्रदूषण की वास्तविक कीमत के बारे में बेमिसाल समझ हासिल होती है। संवादमूलक प्लेटफॉर्म के जरिए इसका उपयोग करने वाले सिर्फ यही नहीं जान सकते हैं कि उनका समुदाय कितना प्रदूषित है। वे यह भी जान सकते हैं कि अगर उनका समुदाय विश्व स्वास्थ्य संगठन के गाइडलाइन या राष्ट्रीय मानकों का पालन करता तो वे कितना अधिक जी सकते थे। इससे स्पष्ट हो जाता है कि जीवाश्म इंधन के उपयोग में कमी लाने वाली नीतियां आज लोगों को अधिक जीने और अधिक स्वस्थ रहकर जीने, तथा विनाशकारी जलवायु परिवर्तन का जोखिम घटाने की गुंजाइश उपलब्ध करा सकती हैं।अतः अगर हम उपरोक्त प्रेरण का अध्ययन करें उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे के वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक रिपोर्ट के अनुसार भारत में भौगोलिक रूप से वायु प्रदूषण का उच्च स्तर बढ़ रहा है तथा 9 साल तक 40 प्रतिशत नागरिकों की उम्र घट सकती है जो एक चिंतनीय विषय है समाधान स्वरूप प्राकृतिक संसाधनों जानवरों का दोहन रोकना जरूरी है। 
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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