नया सबेरा नेटवर्क
भगवान श्री कृष्ण का जन्म हम प्रति वर्ष मानते हैं लेकिन सीखते कुछ नहीं, यही हमारी विडंबना है।
एक बार महाभारत हो गया फिर भी नहीं सुधरे हम। कितनी खून की नदियाँ बहानी पड़ेगी? कृष्ण को कितनी बार जन्म लेना पड़ेगा कि आपस में प्रेम से रहो। प्रेम से रहने में क्या कठिनाई है। हिरोशिमा - नागासाकी जैसी घटनाएं दोहराने की बात रोज हो रही है। अफगानिस्तान में क्या हो रहा है? इंसानियत का कोई लक्षण दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। मनुष्य का पेट लगता है युद्ध से अभी भरा नहीं। बार-बार वह युद्ध जैसी बात करता है, यह सही नहीं है। इससे संसार कितने पीछे चला जाता है। मिलकर रहने में क्या तकलीफ है? बारूदके ढेर पर वह निशिदिन सो रहा है।
धरती पर नये-नये रोज बम बरसाए जा रहे हैं। जन - धन की हानि हो रही है। पर्यावरण का तहस -नहस किया जा रहा है। परमाणु संपन्न देश गाहे - बगाहे एटम-बम की चुनौती देते ही रहते हैं।
जन्माष्टमी मनाने के पीछे की यही हक़ीक़त है कि हम एक सुन्दर संसार की रचना करें और उस संसार में क्या गरीब-क्या अमीर सभी समन्वय बनाकर रखें। मानवता की डगर चलें। किसी देश में खाने की कोई कमी न रहे। करोड़ों लोग हर साल भूख से दम तोड़ रहे हैं। नदियाँ पानी से लबालब भरी रहें। फसलें खेतों में सजी रहें। विश्व की अवाम सुखी और संपन्न रहे। लोग नीरोगी रहें। पर्यावरण की सेहत सदा मजबूत बनी रहे। जंगल कटे नहीं, बल्कि पेड़ अधिक से अधिक लगाए जाएँ।
भगवान श्री कृष्ण ने इस तरह की दुनिया की कल्पना नहीं की थी कि लोग वायरस फैलाकर सृष्टि के खिलाफ काम करें। चीन ने तो वही किया जिसकी आशंका थी। लाखों -लाखों लोग वायरस के चलते मौत के मुँह में समा गए। क्या यही मानवता है?
समूची वसुधा मौत के तांडव से सिहर चुकी है। दफ़नाने के लिए जमींन कम पड़ जा रही है। रोते - रोते आँखों का पानी सूख चुका है। मौत की बारिश के चलते पूरी दुनिया टूट चुकी है। मानवता रो रही है। लोगों की चीख -चीत्कार से गगन कांप रहा है।
महिलायें भी महफूज नहीं हैं। आए दिन उनका चीर हरण हो रहा है। इस बिगड़े जमाने में भगवान श्री कृष्ण से ये सीखें कि सभी की सुख-शान्ति में ही अपना सुख-शन्ति निहित है। यहाँ समझने वाली बात ये है कि अखिल विश्व में किसी एक की सोच से बात बनने वाली नहीं है। हरेक की सोच से ही विश्व में परिवर्तन दिखेगा। माना कि हमारा देश विश्व व्यापी सोच रखता है चीन की तरह विस्तारवादी नीति नहीं रखता।
भगवान श्री कृष्ण के सन्देश को आधार बनाकर हम आज के हालात को निश्चित रूप से सुधार सकते हैं, इसमें संशय नहीं। आज की दुनिया युद्ध को अंतिम विकल्प के रूप में देख रही है जो सही पर्याय नहीं है। भगवान श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता का उपदेश देते हुए कहे थे कि इंसान को श्रेष्ठ कर्म ही करने चाहिए जिससे मानवता अक्षुण्ण बनी रहेगी। मानवता की सुगंध हर किसी को लंबी आयु देती है। भगवान श्री कृष्ण ने ये भी कहा था कि जीवन में अति करने से बचें और निष्काम भाव से काम करते रहें लेकिन आज की स्थिति इसके उलट है। लोग स्वार्थी बनते जा रहे हैं।अपनी इच्छाएं को नियंत्रित करने के बजाय बढ़ाते जा रहे हैं। दिनोंदिन लिप्सा बढ़ती जा रही है। अन्याय में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। मानवता कलंकित होती जा रही है। नारियों का सम्मान घटता जा रहा है। छेड़छाड़, अनाचार, दुराचार, व्यभिचार जैसी घटनाओ में इजाफा होता जा रहा है। भगवान श्री कृष्ण की इस जन्माष्टमी से हमें ये सीख लेनी चाहिए कि हमारा आज का समाज और उन्नत हो। सभी एक दूसरे का सम्मान करें। सभी धर्म एक समान हैं। कोई भी धर्म बुराई का सन्देश नहीं देता।
आत्मा अजर-अमर है। एक कपड़े की भाँति यह शरीर बदलती रहती है और दूसरी शरीर धारण करती रहती है। जो आज आपका है, कल किसी और का था,कल किसी और हो जाएगा।
इस तरह भगवान श्री कृष्ण कुछ भी संचय करने की बात नहीं करते। आज लोग धन का संचय इस तरह कर रहे हैं जैसे मृत्यु के दिन लाद के ले जायेंगे। अगर धन का संचय समान गति से हो तो सभी का जीवन अति सुन्दर हो सकता है। इच्छाएं अनंत हैं। इच्छा पूरी न होने पर प्राणी को फिर से पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है। मदर टेरसा अल्वेनिया की होकर भी इस देश को अपनी मुक्ति के लिए चुनी। आइये हम इस पावन पर्व पर भगवान श्री कृष्ण से यह प्रेरणा लें कि आनेवाली दुनिया खूबसूरत बने। सभी नीरोगी और स्वस्थ्य हों। विश्व में कहीं भी युद्ध जैसे आसार और हालात न बनें। सभी को जीने का समान अधिकार और अवसर मिले। बस खुशियों की बारिश हो।
जय श्रीकृष्ण....!
लेखक : रामकेश एम. यादव (कवि,साहित्यकार)
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