नया सबेरा नेटवर्क
तेज आँधियों से घर सलामत नहीं,
मेरी कहीं किसी से अदावत नहीं।
मैं डरा हूँ इस जहरीली हवा से,
मेरी किसी से कोई शिकायत नहीं।
जीते जी न मिली वो चमन की महक,
मौत के बाद फूलों की जरुरत नहीं।
रिश्तों की तुरपाई बता कौन करे,
अब किसी को दिली मोहब्बत नहीं।
लूट के भी वो खुश नजर नहीं आता,
ऊपरवाले की उस पर रहमत नहीं।
घर- गृहस्थी में अपने रच-बस गई,
साँस लेने की उसको फुरसत नहीं।
खुदा की खुदाई कोई समझ न पाया,
इसमें तो कोई सियासत नहीं।
लूट लो चाहे तू जितनी भी दौलत,
वो पब्लिक की नजर में शराफत नहीं।
गलत ख्वाहिशों को कोई ओढ़ो नहीं,
उल्टे दांव वालों के संग कुदरत नहीं।
हाथ में उठाये हैं जहाँ भी बंदूक,
जानमाल की वहाँ हिफाज़त नहीं।
जब भी मुँह खोलो बस सत्य ही बोलो,
सत्य बोलना कोई बगावत नहीं।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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