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धनतेरस के दिन मैं, परिवार सहित बहुत रोया
क्या बताऊं अपनी व्यथा, उस दिन मैंने अपनी मां को खोया
लोग उस दिन सोना चांदी खरीदे, मैंने मां की अर्थी ढोया
क्या बताऊं अपनी व्यथा, उस दिन मैंने अपनी मां को खोया
लोगों ने दीवाली धूम धाम से मनाया, मैंने सिर पे पगड़ी रस्म की पगड़ी बंधाया
भाईदूज पर बहन के साथ बहुत रोया, चेहरा आसुओं में डुबोया
मां की कमी बहुत महसूस हुई, फिर मैं बहुत रोया
कैसे कटेगी जिंदगी, ये सोच दिल घबराया और रोया
क्या बताऊं अपनी व्यथा, उस दिन मैंने अपनी मां को खोया
क्या बताऊं अपनी व्यथा, उस दिन मैंने अपनी मां को खोया
क्या बताऊं अपनी व्यथा, उस दिन मैंने अपनी मां को खोया
साहित्यकार, कर विशेषज्ञ, कानूनी लेखक, चिंतक, कवि, एड किशन भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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