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मेरी सांसें भी चलने दो,
अपनी सांसें भी चलने दो।
मत उजाड़ो मेरी दुनिया,
अपने बीच ही रहने दो।
मत करो ये मैली धरती,
बस इसका सम्मान करो।
जहर न घोलो कोई हवा में,
हरियाली का विस्तार करो।
स्वस्थ रहो, नीरोगी रहो,
मुझको भी वैसा रहने दो।
मत उजाड़ो मेरी दुनिया,
अपने बीच ही रहने दो।
रहेगा मेरे आँख में पानी,
तब तू जी सकते हो।
सुखा दिया यदि तन-मन मेरा,
कैसे बच तू सकते हो ?
मजबूत करो वृक्षारोपण,
नभ में परिन्दे उड़ने दो।
मत उजाड़ो मेरी दुनिया,
अपने बीच ही रहने दो।
प्राणवायु हमीं हैं देते,
हमसे नदियो की धारा।
सागर को पानी हम देते,
सारा संसार हमारा।
मेरे सुकोमल तन पर,
न आरी-कुल्हाड़ी चलने दो।
मत उजाड़ो मेरी दुनिया,
अपने बीच ही रहने दो।
जड़ी-बूटियों को देखो,
ये मेरे उर में रहती हैं।
हो जाता जब कोई रोगी,
ये मौत से सीधे लड़ती हैं।
अपने जीवन की बगिया को,
फल -फूलों से सजने दो।
मत उजाड़ो मेरी दुनिया,
अपने बीच ही रहने दो।
कोख न उजड़े इस धरती की,
दुल्हन के जैसे सजने दो।
घटती दुनिया की सांसों को,
और न आगे घटने दो।
विलुप्त हो रहे वन्य प्राणी,
उन्हें भी सुख से रहने दो।
मत उजाड़ो मेरी दुनिया,
अपने बीच ही रहने दो।
ग्लोबलवार्मिंग न और बढ़े,
जल, जंगल जमीन बचाओ।
बना रहे कुदरत का संतुलन,
बर्बादी से इसे बचाओ।
शाखों पे परिन्दे नग्मे गाएँ,
डालों पे झूले सजने दो।
मत उजाड़ो मेरी दुनिया,
अपने बीच ही रहने दो।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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