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कर्मयोगी तुम रूठो नहीं...
मानव का एकांगी दृष्टिकोण....
सुख खोजता है.... और....
सहज गति से गतिमान.....
जीवन यात्रा चाहता है.....!
सुख क्या है....?
ईच्छा के अनुकूल परिस्थितियां... किंतु.....
विपरीत परिस्थितियां....!
इसमें बाधक होती हैं.....
मानव जीवन में....
विपरीत परिस्थितियां...!
आती-जाती रहती हैं
परंतु....
मानव ने संघर्षों से, श्रम से और आत्मबल से....
इन पर विजय पाई है...
इस दौर में भी कोरोना के रूप में....
विपरीत परिस्थिति सामने है.......
जिसके निदान के लिए,
नियंत्रण के लिए...!
प्रयास जारी है...
किन्तु...!
एक खटकने वाली बात है..
धरती का भगवान डाक्टर
जो कभी थका नहीं...
कर्तव्य पथ से डिगा नहीं..
आज लाचार सा दिख रहा है..
अपने सहज व्यवहार से
पलायन कर रहा है..
वह डरा हुआ सा है...
कहीं कोरोना के प्रताप से तो..
कहीं तीमारदारों के ताप से..
इस विभीषिका में...
वह भी रूठा जा रहा है..
आँखें मूदे जा रहा है..
यह बुरा संकेत है...
तो बंधुओं....!
आइए आगे बढ़े
इन्हें समझाएं... व
इनको एहसास हम दिलाएं कि.....
विपरीत परिस्थितियां....!
मनुष्य को सबल बनाती हैं...
मनुष्य में श्रद्धा भाव बढ़ाती हैं......
इच्छाशक्ति को प्रबलता देती है......
सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है...
समय के साथ परिस्थितियां...
अनुकूल होंगी और फिर
सुख का आगाज होगा..
हे कर्मयोगी...! हे कर्मयोगी...!
तुम रूठो नहीं.... तुम रूठो नहीं....
आँख मूदो नहीं.. आँख मूदों नहीं
रचनाकार- जितेन्द्र दूबे
पुलिस उपाधीक्षक, जौनपुर
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