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गेसुओं में हो सहर, वो दिन लाके दे दो,
फिर कारखाने चलें,वो दिन लाके दे दो।
गुरबत में दिन कट रहे हरेक का आजकल
चेहरे पे खिले हँसी, वो दिन लाके दे दो।
अपनों को खोते -खोते दुनिया परेशान,
छलके नजर से जाम,वो दिन लाके दे दो।
उदास कोई न रहे, नए ख्वाब फिर बुनें,
सजें नए लिबास में, वो दिन लाके दे दो।
न डसे कोई तन्हाई, न डसे कोई रात,
खौफ कोई न खाये, वो दिन लाके दे दो।
फ़िज़ायें हों धुली और हवाएँ न हों क़ातिल,
फिर फिज़ा गुदगुदाये, वो दिन लाके दे दो।
न कोई बहे आंसू, शाखों पे कहकहा हो,
न पिंजड़े में हों क़ैद, वो दिन लाके दे दो।
मीठी हो वो करवट,जब घर लौट के आएँ,
मुड़ -मुड़ के उसे देखें, वो दिन लाके दे दो।
हवा बजाये बीन और सुबह -शाम हँसे,
न टूटे साथ, न छूटे, वो दिन लाके दे दो।
ऐ! दुनिया बनानेवाले, कुछ तो रहम कर,
उसको मनाये कोई, वो दिन लाके दे दो।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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