नया सबेरा नेटवर्क
रा.साहित्यिक सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था "काव्यसृजन" ने इस कोरोना की विभीषिका से हतोत्साहित जन जीवन में जीवन्तता जगाने का लगातार अभियान अपने सामाजिक दायित्व निर्वाह हेतु चला रखा हैं और विभिन्न नवीन आयोजनों की सतत चल रही श्रृंखला में आज फिर एक नवीन आयोजन " गीत - संगीत - भजन संध्या के रूप में आज गूगल मीट पर आनलाईन अवधेशानंद जी के संयोजन में संपन्न हुआ। डॉ श्रीहरि वाणी जी की अध्यक्षता व पं.शिवप्रकाश जौनपुरी के संचालन में हुए आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में बिजनौर, उत्तर प्रदेश से रमेश माहेश्वरी "राजहंस जी" ने अपनी गरिमामय उपस्थिति एवम भजनों की प्रस्तुति से चार चाँद लगा दिये। यह आयोजन अनूठा इसलिए है कि शायद यह पहला आयोजन होगा किसी संगीतकार ने किसी गायक के साथ पूर्व में कोई अभ्यास नहीं किया.. न गायकी.. भजन लय.. ताल कुछ पूर्व निर्धारित थी..फिर भी संस्थापक जौनपुरी जी के शब्दों में.. " असंगति में सँगत.. " करने हेतु कौसाम्बी - उ.प्र. से अवधेश विश्वकर्मा जी ने हारमोनियम पर तो मुम्बई से तबले पर आनंद पाण्डेय "केवल जी" ने सँगत की बाँसुरी वादन कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया मुम्बई के "कृष्णा कालकर जी" व "कोलकाता" के "अनिरुद्ध तेलंग जी" ने, उधर झाँझ पर संगत का जिम्मा संभाले थे - पालघर से "अमित दूबे जी", डफली पर भजनों की प्रस्तुति दी मुम्बई के तुषार भाई भूता जी ने। देश के कई भागों से जुटे विद्वानों - साहित्यकारों ने अपने स्वरचित तथा परम्परागत.. साथ ही फ़िल्मी गीत - भजन व क्षेत्रीय बोली के लोकशैली गायन आदि से सभी को खूब आनंदित किया। लगभग चार घंटे से भी अधिक चले इस आयोजन को अपने शब्दों - गीतों से सजाने वाले विद्वान पं.शिवप्रकाश जौनपुरी,मनिन्दर सरकार,रमेश माहेश्वरी "राजहंस",खुशबू बरनवाल "सिप्पी" , आशाराम रतूड़ी ,पत्रकार राजीव मिश्र, छोटेलाल कुंटे,हेमंत माथुर,इंदू मिश्रा,सुमन तिवारी,पवन कुमार मिश्र,रश्मिलता मिश्रा ,संजय कुमार,शारदा प्रसाद दूबे, डॉ श्रीहरि वाणी,सौरभ दत्ता "जयंत" ,मुकेश "कबीर" , रमेश गोयन्का, अमित दूबे,कृष्णा कालकर,अनिरुद्ध तेलंग,अवधेश विश्वकर्मा "नमन" ,सुश्री मौसमी प्रसाद, अतुल गुप्त, कवि पत्रकार विनय शर्मा "दीप",आनंद पाण्डेय "केवल" व तुषार भाई भुता जी आदि थे। देश के कई विद्वान - श्रोताओं ने भी अंत तक उपस्थित रहकर इस अनूठे आयोजन का आनंद लिया। अपने अध्यक्षीय भाषण में आदरणीय डॉ.श्रीहरि वाणी जी ने कहा- काव्य सृजन परिवार के आज के आयोजन में सुदूर पूर्व कोलकाता से देश के पश्चिमी छोर मुम्बई तक से विद्वानों ने उपस्थित होकर इसे वास्तव में राष्ट्रीय आयोजन बना दिया, इस काव्य सृजन परिवार में इतने अमूल्य रत्न छिपे हैं इसका हम सभी को भान भी नहीं था, आज के घनघोर भयावह विसंगतियों के वातावरण में भी असंगत के बीच सँगत बिठा पाने की अद्भुत कुशलता हेतु यह आयोजन स्मर्णीय तो हैं ही साथ ही संस्था द्वारा अवसाद ग्रस्त समाज की मनोदशा परिवर्तन के सामाजिक सरोकारों के प्रति दायित्व बोध का भी परिचायक हैं, यही समाज के जिम्मेदार साहित्यकारों - प्रबुद्धजनों की जिम्मेदारी भी हैं कि इन सब से एक ओर तो ललितकलाओं का विकास होता हैं,वहीं व्यक्ति को अपनी क्षमताओं और मानसिक सामर्थ्य परखने और उसे सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाने का सहज अवसर भी मिलता हैं। अंत में संस्था के उपकोषाध्यक्ष सौरभ दत्ता "जयंत" जी ने सभी विद्वानों श्रोताओं का आभार ज्ञापित करते हुए धन्यवाद दिया और आगे भी सहयोग व स्नेह बनाये रखने की अपील की।
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