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ख्वाब आँखों में सजाने की कोशिश करें,
जीवन - नैया बचाने की कोशिश करें।
बह रही है भले ये जहरीली हवा,
इसे मिलकर हराने की कोशिश करें।
माफ कर देगी कुदरत गुनाह जो किए,
जल,जंगल फिर सजाने की कोशिश करें।
अब न खाना तू कीड़े - मकोड़े कभी,
जीवन संयमित बनाने की कोशिश करें।
तराश डालें इस मन के सांचे को अब,
नई दुनिया बसाने की कोशिश करें।
ख्वाहिशें मन की होती हैं बेइंतिहा,
उनका पर अब कतरने की कोशिश करें।
आंसुओं की नदी से कुछ फ़ायदा नहीं,
जिंदगी फिर सजाने की कोशिश करें।
आशियाना परिंदों का तोड़ें नहीं,
फिर हरियाली बढ़ाने की कोशिश करें।
ढल रही है वो जवानी आकाश की,
न एटम -बम से सजाने की कोशिश करें।
रामकेश एम.यादव कवि,साहित्यकार,मुंबई
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