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रुके कभी न ये जीवन हमारा,
चमकता रहे जहां का सितारा।
ये पर्वत,ये नदिया,ये बहते झरने,
टूटे न दिल इनका,ये सारे अपने।
लूटे न कोई ये कुदरती खजाना,
जान गंवाकर भी इसको बचाना।
गंदी न हो वो गंगा की धारा,
चमकता रहे जहां का सितारा।
रुके कभी न.......
सूने शहर और वो सूनी हैं गालियाँ,
उड़ती नहीं हैं पहले जैसी तितलियाँ।
भौंरों के चेहरों पे छाई उदासी,
बेताब नजरें वो कितनी हैं प्यासी।
बाहर है पसरा गमों का नजारा,
चमकता रहे जहां का सितारा।
रुके कभी न.....
तूफ़ाँ जहां में तो आते रहेंगे,
दुनिया के मेले भी सजते रहेंगे।
नहीं जीत पाया किरणों से अँधियारा,
राम से रावण हमेशा है हारा।
डूबते तिनके का बन तू सहारा,
चमकता रहे जहां का सितारा।
रुके कभी न......
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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