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शिक्षको के पास महामारी से निबटने का ज्ञान व अनुभव नहीं
जौनपुर। कोरोना की दूसरी लहर की स्पष्ट चेतावनी के बावजूद प्रदेश सरकार ने सस्ती लोकप्रियता हासिल करने और लोकतंत्रीय ढांचे को मजबूत करने का दिखावा करते हुए प्रदेश में पंचायती चुनाव कराने का जो निर्णय लिया, उसने न केवल प्रदेश की लाखों जनता बल्कि चुनाव कराने वाले हजारों अधिकारियों/शिक्षकों/ कर्मचारियों को भी असमय काल के मुँह में भेज दिया। उच्च न्यायालय द्वारा प्रदेश में केवल 5 भीषण रूप से प्रभावित शहरों में ही लाकडाउन लगाने का निर्देश दिया गया लेकिन सरकार की हठधर्मिता ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सब कुछ नियंत्रण में होने का दावा करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ़ स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया गया। लेकिन अब सरकार प्रदेश व्यापी लाकडाउन लगाने के लिए विवश है। स्वास्थ्य ढांचा चरमरा गया है और लोग तड़प-तड़प कर मरने के लिए मजबूर हो गये हैं। उक्त बातें कहते हुए उप्र मा. शि. संघ के कार्यकारी अध्यक्ष रमेश सिंह ने सरकार पर दिशाहीन होने का आरोप लगाते हुए उसके तुगलकी निर्णयों से प्रदेश को भारी धन-जन की हानि होने की आशंका व्यक्त की है। रमेश सिंह ने मुख्य मंत्री को एक पत्र लिखकर, हाल ही में सरकार द्वारा बनाए जा रहे कोविड सेन्टरो पर शिक्षकों की तैनाती को अदूरदर्शितापूर्ण कदम बताते हुए तत्काल इस निर्णय को वापस लेने की मांग की है। इस सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार के इस निर्णय से न केवल कोरोना पीडि़तों बल्कि कोविड सेन्टरो पर तैनात शिक्षकों दोनों को ही अपनी जान जोखिम में डालना होगा क्योंकि शिक्षकों के पास इस महामारी से निबटने का न तो कोई व्यवहारिक ज्ञान और अनुभव ही है और न ही सरकार/विभाग द्वारा उन्हें कोई प्रशिक्षण ही दिया गया है। इसलिए किसी भी दशा में कोविड सेन्टरो पर शिक्षकों की तैनाती न की जाय। साथ ही पंचायत चुनावों एवं मतगणना के दौरान अपनी जान गवांने वाले अधिकारियों/शिक्षकों/कर्मचारियों को कोरोना वारियर मानते हुए उनके परिवार जनों को रूपये पचास लाख की अनुग्रह राशि का भुगतान यथाशीघ्र सुनिश्चित कराया जाय, अन्यथा संगठन को विवश होकर आन्दोलन के लिए बाध्य होना पड़ेगा जिसका सम्पूर्ण उत्तरदायित्व प्रदेश सरकार पर होगा।
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