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लाशे दिख रही है इधर उधर से
न जाने कब दिख जाएं किधर से
शमशान का वो रास्ता कब्रिस्तान का वो रास्ता
ठहर जा! करोना तुझे खुदा का वास्ता।
जहां अंधेरा सदा दिखता था
वहां पर चिताएं आ रही है,
जो मौत का जिक्र सुनकर सहम जाते थे,
आज उन्हें अज्ञात रूप में मृत्यु आ रही है।
प्रकृति को जो पीड़ा हमने दी थी
वह ब्याज सहित हमें लौटा रही है
उसे छोड़ने का दुस्साहस जो हमने किया,
उसका बदला अब चुका रही है।
हम अपने स्वार्थ में सब भूल गए
हर रिश्ते को हम तोड़ गए
आंख तो हमारी तब खुली जब
हमारे बीच से अपने साथ छोड़ गए ।
बस आह की वेदना धधकती रही
कतारों में लाशें जलती रही
देखकर काल का यह उचित न्याय
हमारी आंखें अश्रु वर्षा करती रहीं
– रितेश मौर्य
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