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15 मई तक विद्यालय बंद करने के लिए शिक्षा मंत्री को लिखा पत्र
विद्यालय आने के लिए प्रधानाचार्य शिक्षकों पर बना रहे दबाव
जौनपुर। इस कोरोना जैसी भीषण महामारी के बीच जहाँ एक ओर केन्द्र एवं प्रदेश सरकारों का रूख जन विरोधी हो गया है और सरकारों की इस हठधर्मिता कि हर हाल में चुनाव और चुनावी रैलियां होनी ही चाहिए के कारण हजारों शिक्षकों/कर्मचारियों और आमजन को कोरोना ने असमय मौत के मुँह में ढकेल दिया। वहीं दूसरी ओर माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाचार्य गण भी तानाशाही का परिचय देते हुए अपने विद्यालयों में शिक्षकों/कर्मचारियों को शत-प्रतिशत उपस्थिति बनाए रखने के लिए विवश किया जा रहा है जबकि उच्च न्यायालय भी 26 अप्रैल तक सभी शिक्षण संस्थानों को बन्द रखने और शिक्षको/कर्मचारियों को विद्यालय न आने का निर्देश दे चुका है। उक्त बातें उ.प्र.मा.शि. संघ के कार्यकारी अध्यक्ष रमेश सिंह ने प्रेस को जारी एक विज्ञप्ति में कहीं। श्री सिंह ने प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री/शिक्षा मंत्री डॉ .दिनेश शर्मा को पत्र लिखकर यह मांग की है कि कोरोना जैसी महामारी के बीच जबकि प्रदेश के सभी माध्यमिक विद्यालयों को 15मई तक पठन-पाठन हेतु बन्द कर दिया गया है तो शिक्षकों/कर्मचारियों को प्रधानाचार्यो द्वारा विद्यालय आने के बाध्य किया जाना उन्हें मौत के मुँह में झोंकने के समान है। इसलिए तत्काल उप-मुख्यमंत्री/शिक्षा मंत्री विभागीय अधिकारियों को इस आशय का निर्देश जारी करें कि शिक्षकों/कर्मचारियों के लिए भी 15 मई तक अनिवार्यरूप से विद्यालय बन्द किए जांय क्योंकि अब तक सैकड़ों शिक्षकों/कर्मचारियों को अविवेकपूर्ण निर्णयों और सरकारी व्यवस्था की खामियों ने कोरोना से मरने के लिए विवश किया है। ऐसी स्थिति में जबकि प्रदेश के अधिकांश माध्यमिक विद्यालय संसाधन विहीन हैं और कोरोना से निपटने के औपचारिक उपायों की व्यवस्था करने में भी असमर्थ हैं, शिक्षकों/कर्मचारियों को विद्यालय बुलाकर उनकी जान जोखिम में डालने को संगठन किसी भी दशा में स्वीकार नहीं करेगा।यदि उप-मुख्यमंत्री/शिक्षा मंत्री द्वारा तत्काल इस सम्बन्ध में सार्थक कदम नहीं उठाया जाता है और शिक्षकों/कर्मचारियों को अपनी जान गंवाने के लिए विवश होना पड़ता है तो इसका सारा उत्तरदायित्व विभाग एवं सरकार पर होगा। ऐसी स्थिति में विवश होकर संगठन को कठोर निर्णय लेने और संघर्ष करने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प शेष नहीं होगा।
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