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देखना है तो तू महल को देख,
खंडहर देखने से क्या फायदा?
देखना है सपना तो दिन में देख,
रात में देखने से क्या फायदा?
उगानी है तो तू मोहब्बत उगा,
नफ़रत की खेती से क्या फायदा?
श्मशान भर चुका है देख मुर्दो से,
बात नहीं समझा, तो क्या फायदा?
आंसुओं को जो समझते हैं पानी,
वहाँ आंसू बहाने से क्या फायदा?
सजाती सिंदूर किसी और के नाम,
चूड़ी खनखनाने से क्या फायदा?
तन को धोया, मन धोया ही नहीं,
सिर्फ गंगा नहाने से क्या फायदा?
माता-पिता की परवरिश किया नहीं,
चारोंधाम करने से क्या फायदा?
मोक्ष के लिए ही आया तू धरा पर,
किसी को लूटने से क्या फायदा?
देख, आना है सच में, तो आ जाओ,
यूँ रातभर जगाने से क्या फायदा?
लगाते हो अमरुद, आएँगे परिन्दे,
फिर पत्थर उठाने से क्या फायदा?
वादा ऐसा न करो जो निभा न सको,
नजरों में गिरने से क्या फायदा?
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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