नया सबेरा नेटवर्क
मैं,ऊपरवाले को पुकारूँ कैसे,
अंदर का दर्द समझाऊँ कैसे।
बेकाबू होता जा रहा कोरोना,
बुझते चराग को जलाऊँ कैसे।
बेमास्क घूम रहे जो इधर-उधर,
बरस रही मौत दिखाऊँ कैसे।
न जाने कितने रो रहे मेरे दिल में,
उन सबका दुखड़ा सुनाऊँ कैसे।
बहुत से फ़रिश्ते हैं सेवा में,
वो इंक़लाबी दिल दिखाऊँ कैसे।
अच्छे लोगों से भरी है दुनिया,
उन्हें तेरी आँख में सजाऊँ कैसे।
करते राष्ट्र सेवा गुजर जो गए,
उन हस्तियों को मैं भुलाऊँ कैसे।
चोरी ऑक्सीजन की करो नहीं,
टूटती हैं सांसें, समझाऊँ कैसे।
चलती है दुनिया इन्हीं सांसों से,
इसकी वो कीमत बताऊँ कैसे।
शहर के शहर लड़ रहे मौत से,
रो रही है फिज़ा,चुप कराऊँ कैसे।
मदद में उतरा अमेरिका, ब्रिटेन,
ऐसी घड़ी में मुस्कुराऊँ कैसे।
बहार के दिन वो फिर लौटेंगे,
उन ख्वाहिशों को दफनाऊँ कैसे।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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