नया सबेरा नेटवर्क
सांस थम रही है, बाहर न जाओ,
घूम रहा वायरस, बाहर न जाओ।
उजड़ रही दुनिया, कुछ तो डरो,
मरोगे बे- मौत, बाहर न जाओ।
मौत से न खेलो,सरकार की सुनो,
तोड़ो न मेरा दिल,बाहर न जाओ।
वीरान हो रहा है, शहर का शहर,
बचो और बचाओ,बाहर न जाओ।
ये लम्हें ज़िन्दगी के बहुत कीमती,
उजड़े न घर अपना,बाहर न जाओ।
मझधार में फंसी यह देख दुनिया,
न डूबे कहीं कश्ती, बाहर न जाओ।
रहोगे जिन्दा, तो सब पा जाओगे,
पर मौत को बुलाने, बाहर न जाओ।
मास्क पहनो औ फासले से रहो,
मना खैर दुश्मन की, बाहर न जाओ।
आँक्सीजन,वेंटिलेटर की देखो कमी,
बरस रही है मौत, बाहर न जाओ।
ज़िन्दगी औ मौत के बीच हम खड़े,
माहौल है खराब , बाहर न जाओ।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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