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ऐसी आग लगाओ प्यारे,
भेद भाव की होली जल जाये
पर प्रह्लाद न जलने पाये !!
मस्तक पर "वन्देमातरम्" की
रंगोली,
अधरों पर "वसुधैवकुटुम्ब"की
बोली,
गा गीत प्यार के,नव बहार के
कोई राग न खलने पाये !
ऐसी आग लगाओ प्यारे!
अगणित मित्रवेष धारी कल चातुर
है' रंग मे' भंग करने को आतुर --
सजग सिपाही जाग्रत रहना
- उनकी दाल न गलने पाये!
ऐसी आग लगाओ प्यारे----
"सङ्घच्छ्द्ध्व'सम्बदध्वं" का मंत्र
निराला---
निश्चित भेदेगा हर षडयंत्र
"निराला "
आस्तीनों पर नित नजरे' रखना
कोई सांप न पलने पाये !
ऐसी आग लगाओ प्यारे----
"केशव 'माधव"-व्रत हो न खण्डित
उन्माद, उन्मादक अवरोधक हो' सब
दण्डित,
ध्येय-निष्ठ कटिबद्ध चला चल
पथ से पा"व न टलने पाये!
ऐसी आग लगाओ प्यारे
भेदभाव की होली जल जाये
पर प्रह्लाद न जलने पाये!!
शुभेच्छु
रमाराम पाण्डेय"निराला" जौनपुर
from NayaSabera.com
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