नया सबेरा नेटवर्क
बाहर निकलने की जरुरत क्या है,
खुलकर घूमने की जरुरत क्या है।
जब वायरस अभी है यहाँ जिन्दा,
मौत से मिलने की जरुरत क्या है।
सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर रखो,
भीड़ में जाने की जरुरत क्या हैं।
बाहर से मिलते लोग अंदर से नहीं,
ऐसे रिश्तों की जरुरत क्या है।
कहीं जाओ, मास्क लगकर जाओ,
रिस्क उठाने की जरुरत क्या है।
मौत बनकर आया है ये वायरस,
आँख मिचौली की जरुरत क्या है।
ठप्प पड़ गया कारोबार दुनिया का,
संक्रमण बढ़ाने की जरुरत क्या है।
सावधानी हटते ही करता है प्रहार,
यम से मिलने की जरुरत क्या है।
वायरस की खेती वुहान मत करना,
ऐसे विश्व - युद्ध की जरुरत क्या है।
पराजित तो होगा ही एक दिन ये,
इसे लीज़ पे रखने की जरुरत क्या है।
जिंदगी बहुत ही कीमती है दोस्तों!
ऐसे बाहर उड़ने की जरुरत क्या है।
कितनी हसरतें पाले होंगे जिन्दगी की,
जलती दीया बुझाने की जरुरत क्या है।
मिलने के लिए दिल दुखता है,दुखने दो,
किसी हूर से मिलने की जरुरत क्या है।
रामकेश एम.यादव(कवि, साहित्यकार)मुंबई,
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