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बदला इंसान नही,
हटा उसका मुखौटा देखा।
मैने तो बदलते जुबान अरु,
पलटते इंसान को देखा ।।
भाई-भाई में जंग लड़ते देखा,
पुत्र मोह में अंधा पिता को देखा।
यारों क्या बात करूं शिक्षा की,
शिक्षक को अपशब्द कहते देखा।।
बड़े पदवी और नीची सोच को देखा,
कथनी करनी में गिरे इंसान को देखा।
समाज में धूम रहे कुछ धूर्त ईमानदार,
मुखौटो में छिपे ऐसे इंसान को देखा।।
रिश्तें नातों को तार-तार होते देखा,
बद्द्जुबानों से मां-बहन को नोचते देखा।
क्या बात करूं मैं शिक्षा की,
मैने शिक्षित लोगों के ईमान को देखा।।
पूछों मत यारों मैंने क्या-क्या देखा,
गिरते स्तर और बदलते परिवेश को देखा।
बड़े-बड़े वसूलों की बातें करने वालों को,
पल पल में बदलते मैने देखा।।
अंकुर सिंह
चंदवक, जौनपुर,
उत्तर प्रदेश
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