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हर मोड़ पर वो मेरी इम्दाद करता है,
वो कहीं एक दिन मेरा खुदा हो न जाए।
इस मदभरी जवानी के साथ मैं चला,
आज कहीं इस कश्ती में रात हो न जाए।
पानी बड़ा है ठंडा देखो ! समंदर का,
हूक उठी दिल में कुछ और हो न जाए।
रुत जवानी की तूँफा भरी होती है,
लंबी चलेगी बात, रतजगा हो न जाए।
ये धड़कन धड़कती है इसी के नाम से,
आशिक़ी में ये कहीं बेकरार हो न जाए।
इश्क़ का दुश्मन सदा से रहा जमाना,
मोहब्बत की हबेली नीलम हो न जाए।
मैं हूँ एक मरीज इसकी मोहब्बत का,
ये मेरी हर दर्द का ईलाज हो न जाए।
इतना हसीन खुदा ने क्यों इसे बनाया,
कहीं मेरे तीर की ये कमान हो न जाए।
जवानी का हर ऐब मुझको है गवारा,
बेपनाह मोहब्बत बेकार हो न जाए।
कितना खून दर्ज हैं उस आदमी के नाम,
डर है इस बात का रहनुमा हो न जाए।
रामकेश एम.यादव(कवि, साहित्यकार)मुंबई,
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