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आजकल जीवन बड़ा मुझको,
अकेला अकेला सा लगता है।
तुम्हारे साथ ना होने से,
जीवन खाली खाली सा लगता है।।
जब जब तन्हा होता हूं मैं,
तुझ बिन बैचैन सा रोता हूं मैं।
बन्द आखों से देख तुम्हे मैं,
तुममें खोया सा रहता हूं मैं।।
बिन तुम इस जीवन में,
अकेला अकेला सा रहता हूं।
किसको बताऊं मन की व्यथा,
खुद में खोया खोया सा रहता हूं।।
कमी खलती है मुझको भी तेरी
दूर रहकर उर में बसती तू मेरी।
कैसे करू तुम बिन मैं कल्पना,
मैं पतंग और तुम हो डोरी मेरी।।
भले दूर हो तुम आज मुझसे,
देखता मैं तुम्हे बन्द चक्षु से।
रहती तुम आज बड़े महलों में,
हर पल पाता तुझको मैं दिल से।।
पपीहा तड़पे स्वाति नक्षत्र को,
मैं भटकूं तुमसे मिलन को।
आजकल खोया खोया सा रह,
जन जन में निहारू मैं तुझको।।
एक बार तू जरा लौट के आ,
मुझको नीद की थपकी दे जा।
इस भोले भाले दिल मेरे को,
अपने घर का पता बता जा।।
तुम बिन खाली खाली सा लगता हूं,
तुम बिन तड़प तड़प कर जीता हूं।
प्रेम मिलन के बगिया में आ जा प्यारी,
तुम बिन खोया खोया सा रहता हूं।।
अंकुर सिंह
चंदवक, जौनपुर,
उत्तर प्रदेश
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