बनी वह दुल्‍हन | #NayaSaberaNetwork

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कंगन पहनते 
याद आयी उसे 
पृथ्वी की परिधि 

चाँद सी चमकी 
माथे पर बिंदी 

आँखों में बँध गया 
नि:स्‍सीम आकाश
आँसुओं में हिल्‍लोरे
सातों सागर 

वह अभी अभी 
बनी थी दुल्हन 

भरा जाना था उसकी 
सीधी मांग में सिंदूर 
जीवन भर की वक्र यात्रा का।

युवा लेखिका शुचि मिश्रा जौनपुर

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