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सुनो सुनाता तुम्हे आज मै मेरा ये सन्देश सुनो।
धरती मांँ है आंँचल जैसा मेरा भारत देश सुनो।।
जब से खुली आंँख तब से सूरत जानी पहचानी है।
बहुरंगी पट फागुन में है तो सावन में धानी है।
सागर सेवित मेघ मेखलित इसका है परिवेश सुनो।।
धरती मांँ है आंँचल जैसा मेरा भारत देश सुनो।।
गौरव की रक्षा में जौहर चिता धधकती रही यहांँ।
कई महीने नालन्दा की आग सुलगती रही यहांँ।
लूट लूट कर सोमनाथ की दौलत गई विदेश सुनो।।
धरती मांँ है आंँचल जैसा मेरा भारत देश सुनो।।
वीर मराठों के पौरुष का एक जमाना देखा है।
इसने राजपुताने में केसरिया बाना देखा है।
भगत सिंह आजाद सरीखे सहे देशहित क्लेश सुनो।।
धरती मांँ है आंँचल जैसा मेरा भारत देश सुनो।।
आज हवाएंँ बदल गई हैं आज मिली आजादी है।
आज श्रीनगर कि खुल करके सांँस ले रही वादी है।
इसे सहेजो लग न जाए इसको फिर से ठेस सुनो।।
धरती मांँ है आंँचल जैसा मेरा भारत देश सुनो।।
शिवानन्द चौबे
शिक्षक
श्री गौरीशंकर संस्कृत महाविद्यालय सुजानगंज जौनपुर
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