नहीं जेब में पैसे ।
आ गये त्यौहार ।।
शुरु हुआ सिलसिला ।
नंबर है क्रमवार ।।
मुश्किल नमक-रोटी ।
हुआ बुरा हाल ।।
पड़ा फीका उत्सव ।
ढ़ह गया टकसाल ।।
करना है व्यतीत ।
पड़ता ऐसा जान ।।
किल्लत और कड़की ।
उमंग है बेजान ।।
मंजर है तबाही ।
है मनहूस साल ।।
खदेड़ने की आस ।
आया जो अकाल ।।
कृष्णेन्द्र राय
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