भारत की अनमोल, नायाब, प्राचीन कलाकृतियां, पूरावशेष और सांस्कृतिक धरोहरों को विदेशों से वापस लाने की जांबाज़ी हर शासनकाल में ज़रूरी | #NayaSaberaNetwork



नया सबेरा नेटवर्क
मां अन्नपूर्णा देवी का 1913 में चोरी हुआ स्वरूप कनाडा से वापस आना भारत की बड़ी उपलब्धि - हर शासनकाल में भारतीय धरोहर वापसी पर प्राथमिक संज्ञान लेना ज़रूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत की प्राचीन संस्कृति हज़ारों वर्ष पुरानी है।  भारत में हजारों वर्षों की अनमोल नायाब प्राचीन कला कृतियां, पूरावशेष, सांस्कृतिक धरोहर का अणखुट ख़जाना था। सौम्या, सभ्यता का प्रतीक भारत वैश्विक रूप से इस ख़जाने और प्राकृतिक धरोहर, संपदा, अर्थव्यवस्था में लबालब था। सोलवीं सदी का आखिरी साल था जब दुनिया के कुल उत्पादन का एक चौथाई माल भारत में तैयार होता था। यही सभ कारण है कि भारत सोने की चिड़िया के रूप में वैश्विक रूप से प्रसिद्ध था। साथियों बड़े बुजुर्गों की कहावत हैं, नज़र लगी, ने साकार रूप लिया और अंग्रेजों की भारत पर नज़र लगी, और ईस्ट इंडिया कंपनी इकाई की नींव भारत में रखकर पूरे भारत को अपने कब्जे में कर लिया और भारत में अंग्रेजों का शासन लागू हुआ, ऐसा इतिहास में दर्ज़ है जो हम सबको मालूम है। यहीं से शुरू हुआ भारत और उसकी नायाब अनमोल धरोहरों को चुराने और लूटने का सिलसिला और समय के चक्र के साथ भारत की अनेकों धरोहरों को भारत से जुदा कर दिया गया। साथियों बात अगर हम अभी इन अनमोल धरोहरों को भारत वापस लाने की करें तो, शासन किसी भी पार्टी का हो इन प्राचीन धरोहरों को जो भारत का श्रृंगार है, मुकुट है वापस लाना प्राथमिक ध्येय होना ज़रूरी है। क्योंकि यह हमारी भारत माता का श्रृंगार है। जिसे हमें अपनी मां को वापस दिला कर अपना फ़र्ज अदा करना है। साथियों बात अगर हम 1913 में चोरी हुई मां अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति कनाडा से वापस लाकर दिनांक 11 नवंबर 2021 को यूपी सरकार को सौंपने की करें तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अनुसार,  मां अन्नपूर्णा देवी की 1913 में चोरी हुई मूर्ति कनाडा से वापस आ गई है। आज पूरे विधि विधान के पूजा पाठ करके मां की मूर्ति को भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने यूपी सरकार को सौंप दिया है। केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी ने यूपी सरकार के मंत्री को यह मूर्ति सौंपी है।मां अन्नपूर्णा की मूर्ति को 4 दिन तक उत्तर प्रदेश के कई जिलों से शोभायात्रा निकाल कर वाराणसी ले जाया जाएगा। वहां 15 नवंबर को मुख्यमंत्री विधिविधान से काशी विश्वनाथ मंदिर में मूर्ति को स्थापित करेंगे गुरुवार को कार्यक्रम में केंद्र और यूपी सरकार के दर्जनभर से ज़्यादा मंत्री उपस्थित थे। साथियों बात अगर हम प्रतिमा के सद्भावनापूर्ण स्थापना की करें तो, एक हाथ में अन्‍न और दूसरे में खीर वाली मां अन्‍नपूर्णा की दुर्लभ प्रमिता विश्‍वनाथ मंदिर गर्भगृह के ईशान कोण पर स्‍थापित होगी। ईशान कोण नंदी के पास स्थित प्रवेश द्वार के पूरब किनारे स्थित है। काशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में प्राण प्रतिष्‍ठा के संपूर्ण अनुष्‍ठान काशी विश्‍वनाथ धाम में पूरे होंगे। आयोजन में माननीय पीएम वर्चुअल रूप से जुड़ेंगे। प्राण प्रतिष्‍ठा से पहले मूर्ति को काशी में भ्रमण कराया जाएगा ताकि ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग दर्शन कर सकें। साथियों बात अगर हम इसके पहले अमेरिका से लाई गई 157 कलाकृतियों और पूरावशेष की करें तो पीआईबी के अनुसार, इन 157 कलाकृतियों की सूची में 10वीं सदी की बलुआ पत्थर से बनी रेवंत की डेढ़ मीटर लम्बी नक्काशीदार पट्टिका से लेकर 12वीं सदी की कांसे की 8.5 सेंटीमीटर उंची नटराज की उत्कृष्ट मूर्ति जैसी वस्तुओं का एक विविध सेट शामिल है। अधिकांश वस्तुएं 11 वीं सदी से लेकर 14 वीं सदी के काल की हैं। इसके साथ-साथ इनमें 2000 ईसा पूर्व की तांबा निर्मित मानववंशीय वस्तु या दूसरी सदी के टेराकोटा निर्मित फूलदान जैसे ऐतिहासिक पुरावशेष भी शामिल हैं। कोई 45 पुरावशेष ईसा पूर्व काल के हैं। इनमें से आधी कलाकृतियां (71) जहां सांस्कृतिक हैं, वहीं बाकी आधी कलाकृतियों में हिंदू धर्म (60), बौद्ध धर्म (16) और जैन धर्म (9) से जुड़ी मूर्तियां शामिल हैं।...कुल 56 टेराकोटा टुकड़ों में (फूलदान दूसरी सदी, हिरण की जोड़ी 12वीं सदी, महिला की आवक्ष मूर्ति 14वीं सदी) और 18वीं सदी की तलवार है, जिसके फ़ारसी में लिखे आलेख में गुरु हरगोविंद सिंह का उल्लेख है।साथियों बात अगर हम इन धरोहरों को विदेशों से भारत वापस लाने की प्रक्रिया की करें तो केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्री ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बताया कि, केंद्र में वर्तमान सरकार आने के बाद देश के कई साधु-संतों ने पीएम से मुलाकात करके ये मांग की थी कि देशभर के कई मंदिरों से बहुत पुरानी और महत्वपूर्ण मूर्तियां चोरी होकर विदेशों में चली गयी थीं उनको वापस लाने के लिए प्रयास करें। पीएम ने विदेश मंत्रालय और सांस्कृतिक मंत्रालय और पुरातत्व विभाग को इसके बारे में निर्देशित किया। उसके बाद से जब भी किसी मूर्ति या कोई एंटीक सामान के बारे में पता लगता है तो विदेश मंत्रालय उसके बारे में जानकारी इकट्ठा करता है फिर उसे सांस्कृतिक मंत्रालय के साथ साझा किया जाता है। सांस्कृतिक मंत्रालय फिर उस वस्तु के बारे में पूरी जानकारी इकट्ठा करता है। पुरातत्व विभाग उस वस्तु का क्या महत्व है, कितनी पुरानी है समेत अन्‍य जानकारी करके विदेश मंत्रालय के साथ साझा करता है और फिर विदेश मंत्रालय उस देश की सरकार के साथ उसको लेकर बातचीत करके वापस लाता है। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत की अनमोल नायाब प्राचीन कलाकृतियों, पूरावशेष और सांस्कृतिक धरोहरों को विदेशों से वापस लाने का ज़ज़बा और जांबाज़ी हर शासनकाल में ज़रूरी है तथा मां अन्नपूर्णा देवी की 1913 में चोरी हुई मूर्ति कनाडा से वापस आना भारत की बड़ी उपलब्धि है। हर शासनकाल में विदेशों से भारतीय धरोहर वापसी पर प्राथमिकता से संज्ञान लेना ज़रूरी है। 

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट  किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र


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