देखो! धरा पे ढंग का इंसान चाहिए,
आबाद रहे दुनिया तो किसान चाहिए।
बम, एटम-बम पे कभी नाज न कर तू,
दरिया न बहे खून की समाधान चाहिए।
लड़ें न कभी आंगन की आपस में ईटें,
इस तरह का दोस्तों मुझे जहान चाहिए।
आए हो दुनिया में बनों मील का पत्थर,
जाने के बाद पांव का निशान चाहिए।
समझा न किसी को तलवार की भाषा,
सारे जहां में प्यार की जुबान चाहिए।
सर- परस्त जो थे वो कब के चले गए,
पहलेवाला फिर से हिंदुस्तान चाहिए।
नये -नये बुलंदियों की सीढ़ी चढ़े देश,
हर दिल में वैसा ही आसमान चाहिए।
सपने में भी शेर फाड़ के न खा सके,
न इस तरह की मुझे दास्तान चाहिए।
दफ़्तर को हैं बनाते रिश्वत की दुकान,
इस तरह का हमको न दीवान चाहिए।
रखे जो अपने हृदय में गाँव की पीड़ा,
उगे न कोई भूख वो प्रधान चाहिए।
हवा के घर में हो हर किसी का मकान,
मुझको न प्रदूषण का वितान चाहिए।
जिस्म की मंडी पे कोई जड़ दो ताला,
ऐसा धरा पर कोई न मचान चाहिए।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार,मुंबई
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