नया सबेरा नेटवर्क
बहता हुआ ये झरना, बहता हुआ ये पानी।
कण-कण में है बसा तू,कण-कण की जिंदगानी।
वादी, नदी, पवन सब, तेरा ही गुण ये गाते।
आया न होता जग तू, जीवन कहाँ से पाते?
पत्थर - पहाड़ वन में, छाई ! तेरी जवानी।
कण-कण में है बसा तू,कण-कण की जिंदगानी।
पानी बिना परिंदे, पानी बिना वो धंधे।
तू साँस है सभी का, यश गाते तेरे बन्दे।
महिमा अनंत तेरी, दुनिया तेरी दीवानी।
कण-कण में है बसा तू ,कण-कण की जिंदगानी।
तन - मन से खेलती हैं, वो डैम की दीवारें।
उगते हैं खेत सोना, तुझसे हैं ये बहारें।
गंगा में बह रहा है, सदियों से तेरा पानी।
कण-कण में है बसा तू ,कण-कण की जिंदगानी।
आती है बाढ़ जब भी, सोता है तू शजर पे।
क़ातिल तेरी अदाएँ, दिखती हैं हर शहर पे।
तेरी रस भरी ये आँखें, करती हैं छेड़खानी।
कण-कण में है बसा तू ,कण-कण की जिंदगानी। बहता हुआ ये....
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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