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इतने कहां से लाऊं अब राम देश में
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लक्ष्मण भरत सा भाई न मिल रहा यहां।
सुरभित मर्यादा पुष्प न खिल रहा यहां।
हो रहा शीलहरण अविराम देश में।
इतने कहां से लाऊं अब राम देश में।।
आज भी तो नारी सीता स्वरूप है।
कुरान बाइबिल और गीता का रुप है।
अगणित यहां हैं रावण गुमनाम वेश में।
इतने कहां से लाऊं अब राम देश में।।
लोग निजी स्वार्थ से घिरे पड़े हैं।
ध्वज परमार्थ के औंधे गिरे पड़े हैं।
गढ़ने पड़ेंगे फिर से नए आयाम देश में।
इतने कहां से लाऊं अब राम देश में।।
युगों का संघर्ष हैसच और झूठ में।
रूप बस बदला है उत्कर्ष लूट में।
श्रद्धा भी संकुचित हुई,अब नाम शेष में।
इतने कहां से लाऊं अब राम देश में।।
आओ, चलो एक राह निश्चय तो हम करें।
मिल बैठ प्रेम प्यार से निर्णय तो हम करें।
फिर उभरेंगे दृश्य नयनाभिराम देश में।
इतने कहां से लाऊं अब राम देश में।।
सबको अपने कर्म में लगने पड़ेंगे अब।
गीत फिर से एकता के पढ़ने पड़ेंगे अब।
गूंजेंगे मोहब्बत के पुनः पैग़ाम देश में।।
इतने कहां से लाऊं अब राम देश में।।
नरसिंह हैरान जौनपुरी, मुंबई
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