नया सबेरा नेटवर्क
जो उड़ना चाहें उन्हें उड़ने दो,
उन पंखों को खूब संवरने दो।
उड़ने पर ही मिलेगी वो दुनिया,
वो दुनिया उनकी निखरने दो।
कैसे उठाते हैं धरती का बोझ,
उन्हें अपना तजुर्बा लेने दो।
ना क़ैद करो उन्हें पिंजड़े में,
लहलहाती फसल चखने दो।
जब बनाएंगे ये स्वयं घरौंदा,
उन्हें सुनहले सपने बुनने दो।
बहुत मोड़ आते हैं जीवन में,
फिसलन की राह भी चलने दो।
बचपन का जमाना है उनका,
जरा आँख-मिचौली करने दो।
संस्कार दिए हो तू यदि अच्छा,
तो मंगल- चाँद तक बढ़ने दो।
रामकेश एम. यादव (कवि, साहित्यकार) मुंबई
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