नया सबेरा नेटवर्क
लता की हिंदी रफी की हिंदी
जन जन की भाषा हिंदी है।
रंग बिरंगी तितली जैसी
ये माथे की बिंदी है।
सूर कबीर रसखान की हिंदी
देखो कितनी दुलारी है।
माखन मिसरी जैसी रसीली
हिंदी विश्व को प्यारी है।
ग़ालिब की धड़कन थी हिंदी
खुसरो के मन को भाई थी।
मातृभूमि पर मर मिटने की
जन जन में अलख जगाई थी।
संस्कारों से सजी धजी ये,
मानों एक फुलवारी है।
सहज सरल औ सुगम ये हिंदी
इसमें प्रगति हमारी है।
एक सूत्र में बाँध के रखती
देश की देखो धड़कन है।
दुनियावाले जब बोलें हिंदी
तो लगता अपनापन है।
रामकेश एम यादव (कवि साहित्यकार)मुंबई
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