नया सबेरा नेटवर्क
ये हवाएँ बतायेंगी मेरा मुकाम,
ये फिजायें बतायेंगी मेरा नाम।
उड़ रहे नील गगन में जो बादल,
हम उन्हीं से रोज पीते हैं जाम।
कितने सपने उगाती रोज कुदरत,
देती है बहुत कुछ, लेती न दाम।
जुगुनू खड़े हैं रात की राहों में,
उनकी रोशनी को मेरा सलाम।
कलियों के पलकों में सजते सपने,
पहरा देता भौंरा बनकर गुलाम।
भीनी-भीनी खुशबू आती फिजा से,
बैठो उसके पहलू में सुब्ह-ओ -शाम।
नजरें हैं क़ातिल उस रातरानी की,
बिना मयकदे गए पी रहे हैं जाम।
ये दुनिया है देखो बड़ी खूबसूरत,
हम ठहरे ख्वाहिशों के गुलाम।
लोग थोड़ी पीकर लगते हैं बहकने,
दिखाने वो लगते हैं कि वो भी निज़ाम।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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