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अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस 1 अक्टूबर 2021 पर विशेष
बुजुर्ग हमारे ईश्वर अल्लाह के तुल्य - बुजुर्गों के चरणस्पर्श कर उनका आशीर्वाद पाने वाले मानुषी जीव इस पृथ्वी पर सबसे भाग्यशाली - एड किशन भावनानी
गोंदिया - वैश्विक रूप से भारतीय संस्कृति को सर्वोत्तम माना जाता है,जो हज़ारों साल पुरानी संस्कृति है। नागरिकों द्वारा भारत को माता का दर्जा दिया हुआ है। यहां मर्यादाओं, सम्मान और सेवा रूपी अंखुट ख़जाना, अतुल्य पूंजी का भरपूर भंडार है जो हर मानुषी जीव की बुद्धि में जन्म काल से ही समा जाता है। यही कारण है कि कुछ अपवादों को छोड़कर भारत में माता-पिता, बुजुर्गों को ईश्वर अल्लाह के तुल्य माना जाता है। उनकी सेवाभाव, आशीर्वाद सबसे बढ़कर अनमोल ख़जाने के तुल्य होता है ऐसा भाव है भारत माता के सपूतों का!!! साथियों बात अगर हम 1 अक्टूबर 2021 की करें तो यह दिन हमारे माता-पिता बुजुर्गों, वृद्ध जनों के लिए एक खास दिन है याने अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाया जाता है, साथियों बुजुर्ग हमारे लिए ईश्वर अल्लाह का अवतार होते हैं जिनके आशीर्वाद से हमारा पालन-पोषण हुआ और आज हम जिस भी पदपर, स्थान पर हैं उन्हीं की ही देन है। इसलिए उनके प्रति मनमें मान औरसम्मान आदर प्रेम रखना हमारा प्राथमिक मानुषी कर्तव्य है।हमें हमेशा उनका ध्यान हर अवस्था में पूरी सच्ची श्रद्धा के साथ रखना ईश्वर अल्लाह के को ख़ुश करने के तुल्य है।...साथियों मेरा मानना है कि माता-पिता, वृद्धजनों की सेवा चाकरीके तुल्य इस संसार में कोई सेवा नहीं है। अगर अपवादी मानुषी जन इस सेवा चाकरी को छोड़कर अन्य आध्यात्मिक स्थलों पर पुण्य कमाने के लिए जाते हैं तो उन्हें पुण्य तो नहीं मिलेगा बल्कि उनके कमाए हुए पुण्य भी माईनस में चले जाएंगे, क्योंकि हमने अगर माता-पिता बुजुर्गों को खश किया तो संसार का अनमोल ख़जाना जीत लिए ऐसा मेरा भावपूर्ण मानना है।...साथियों बात अगर हम अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के शुरू होने की करें तो, 14 दिसंबर, 1990 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संकल्प 45/106 में दर्ज किए गए अनुसार 1 अक्टूबर को वृद्ध व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में स्थापित करने के लिए मतदान किया। 1अक्टूबर 1991 को पहली बार छुट्टी मनाई गई थी और अब 1 अक्टूबर, 2021 को पूरे विश्व मेंअंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाया जा रहा हैं। वर्ष 2021 संयुक्त राष्ट्र की 76 वीं वर्षगांठ और अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस की 31वीं वर्षगांठ का प्रतीक है।...साथियों बात अगर हम कई बुजुर्गों के वर्तमानपरिवेश की करें तो अत्यंत ही तीव्र शर्मनाक और दुःख की बात है कि वर्तमान बदलते परिवेश में पाश्चात्य संस्कारों से ग्रस्त आधुनिकता की खुमारी में कुछ मानुषी जीवो के कारण बुजुर्गों के सामने. स्वास्थ्य के अतिरिक्त मुख्य समस्या अकेलेपन की है। वयस्क होने पर बच्चे अलग रहने लगते हैं और केवल सप्ताहान्त या अन्य विशेष अवसरों पर ही वे उनसे मिलने आते हैं। कभी-कभी उनसे मिले महीने या वर्ष भी गुजर जाते हैं। बीमारी के समय उन्हें सान्त्वना देेने वाला सामान्यत:उनका कोई भी अपना उनके पास नहीं होता। हालांकि इन दुराचारी कपूतों के लिए,भारत में 2007 में माता -पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक संसद में पारित किया गया। इसमें माता -पिता के भरण-पोषण, वृद्धाश्रमों की स्थापना, चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था और वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है।...साथियों बात अगर हम बुजुर्गों वृद्धजनों के सम्मान की करें तो,वृद्धजनसम्पूर्ण समाज के लिए अतीत के प्रतीक, अनुभवों के भंडार तथा सभी की श्रद्धा के पात्र हैं। समाज में यदि उपयुक्त सम्मान मिले और उनके अनुभवों का लाभ उठाया जाए तो वे हमारी प्रगति में विशेष भागीदारी भी कर सकते हैं। वृद्धजनों की चिंता इस बात पर विशेष होनी चाहिए कि वे स्वस्थ, सुखी और सदैव सक्रिय रहें।...साथियों बात अगर हम अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस 1 अक्टूबर 2021 को भारत में मनाने की करें तो,पीआईबी के अनुसार सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय 1 अक्टूबर, 2021 को नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के अवसर पर वरिष्ठ नागरिकों के सम्मान में वयो नमन कार्यक्रम का आयोजन कर रहा हैं। मंत्रालय वृद्धजनों के लिए हर वर्ष 1 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाता है।भारत के उपराष्ट्रपति कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हैं और ‘वयोश्रेष्ठ सम्मान’ पुरस्कार प्रदान करेंगे। इस अवसर पर एल्डरली लाइन 14567 को राष्ट्र को समर्पित करेंगे और सीनियर एबल सिटिजन रिएम्प्लॉयमेंट इन डिग्निटी (एसएसीआरईडी) और सीनियर केयर एजिंग ग्रोथ इंजन (सीएजीई) पोर्टल्स का शुभारंभ करेंगे। हमारे यहां प्राचीन भारत में बुजुर्गों के प्रति विशेष सम्मान और आदर की भावना थी। वे सदैव परिवार के मुखिया रहते और उन्हीं के मार्ग-निर्देशन में परिवार की गतिविधियां आगे बढ़तीं। छोटों के द्वारा बड़ों के चरणस्पर्श और बड़ों के द्वारा छोटों को आशीर्वाद की पंरपरा ने अपनत्व की इस भावना को सदैव मजबूत बनाये रखा।संयुक्त परिवार की प्रथा ने आबाल वृद्ध नर-नारी सभी को आपसी प्रेम की माला में पिरोये रखा। किन्तु कालान्तर में संयुक्त परिवार की प्रथा चरमराने लगी और धीरे-धीरे वह समाप्तप्राय हो गयी। चरण छूने और आशीर्वाद की परंपरा भी अब औपचारिकता बनकर रह गयी हैं। पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हमारे नवयुवक भी विवाह के उपरान्त अपना-अलग घर बसाने लगे हैं। इससे समाज में वृद्धों की स्थिति दयनीय होती चली गयी। अनेक राज्य सरकारों ने अपने यहां बेसहारा वृद्धों के लिए पेंशन की व्यवस्था की हुई है, मगर वह इतनी कम है कि उससे दो वक्त का भोजन जुटाना भी मुश्किल हो जाता है।फिर व्यवस्था की उलझनों के कारण उस पेंशन को प्राप्त करना भी टेढ़ी खीर है। राज्यसेवा में रहे व्यक्तियों को अवश्य ही अपनी पेंशन के कारण आर्थिक संकट की आशंका नहीं रहती, मगर बीमारी के समय उनके लिए भी किसी अपने के अभाव में भयानक परेशानी हो जाती है। अवश्य ही, जिन परिवारों में थोड़े बहुत पुराने संस्कार शेष हैं, वहां के बुजुर्ग अपने इस अकेलेपन की पीड़ा से एक सीमा तक मुक्त रह पाते हैं।अतः हम अगर उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे के भारतीय संस्कृति में बुजुर्गों का स्थान मानव पलकों पर है बुजुर्ग हमारे समाज के अनुभवी स्तंभ हैं परिवार समाज में श्रद्धा के पात्र हैं बुजुर्ग हमारे ईश्वर अल्लाह के तुल्य हैं बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद पाने वाले मानुषी जी इस पृथ्वी पर सबसे भाग्यशाली माने जाते हैं।
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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