नया सबेरा नेटवर्क
ईमान का सौदा करने लगे,
रिश्ता निभाना भूल गए।
उड़ने लगे हैं नभ में जब से,
पैदल चलना भूल गए।
पीने लगे हम आँखों से जब,
घर का पता ही भूल गए।
लगती हमको इतनी प्यारी,
पलक गिराना भूल गए।
प्यार का रंग चढ़ा है जब से,
हम खाना - पीना भूल गए।
बरसों से लगी थी आग जिगर,
दुनिया को बताना भूल गए।
फैला है कोरोना जब से यहाँ,
हँसना - हँसाना भूल गए।
रोजी - रोटी के पंख कटे,
चूल्हा सुलगाना भूल गए।
बेसन की रोटी,आम की चटनी,
पन्ना पीना भूल गए।
नजर न आते बचपन के शजर,
जामुन खाना भूल गए।
याद रहे गाँवों के पनघट,
हम पाती लिखना भूल गए।
झर गए लाज- हया के गहने,
सिर पल्लू रखना भूल गए।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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