नया सबेरा नेटवर्क
जिंदगी है तो मुस्कुराना चाहिए,
जिन्दा हो तो नजर आना चाहिए।
हाथ पर हाथ रख कर बैठे हैं जो,
हथेली कर्मों से सजाना चाहिए।
ख्वाब रात में नहीं दिन में देखो,
आसमां को जमीं पे लाना चाहिए।
दुनियादारी हमारी यहाँ ऐसी,
क़ातिल को सीने से लगाना चाहिए।
रात -दिन चाहता है जब वो उसको,
रुख से पर्दा उसे भी उठाना चाहिए।
रूठने का हक़ तो है दोस्त को भी,
उसे सच्चे मन से मनाना चाहिए।
नहीं झेल पाती ज़ब सितम मौसम का,
दर- ओ - दीवार को सजाना चाहिए।
कागज की कश्ती से पार करो न नदी,
लोगों को आईना दिखाना चाहिए।
लुक छिपकर जो बहा जाते हैं आँसू
दिल में उन्हें घोंसला बनाना चाहिए।
खिली है धूप यादों के जंगल में,
पिया को घर लौट आना चाहिए।
छलक जाता है जाम उसकी आँखों से,
पीनेवालों को वहाँ जाना चाहिए।
गलतफहमी में बहा रहे जो खून,
ईश्वर को उनको बुलाना चाहिए।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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