नया सबेरा नेटवर्क
महंगाई से लोग परेशान हैं,
खुश न तो खेत न ही वो खलिहान हैं।
पाई - पाई के लिए लोग मोहताज़,
कुछ का तो पैसा ही भगवान है।
लगी है आग रोज डीजल- पेट्रोल में,
कीमत उसकी सातवें आसमान है।
पसारी ली है ऐसा पांव बेरोजगारी,
लगता आदमी जैसे बेजान है।
मंहगाई का असर सीधे जेब पर,
अच्छे बाणों से खाली कमान है।
कैसे हो ऐसे रिश्तों की तुरपाई,
हर एक घर की अपनी दास्तान है।
वोटों की फसल तक सीमित जनता,
घड़ी- घड़ी वोटरों का इम्तिहान है।
धूप पर जैसे निर्धन का हक़ नहीं,
मुट्ठीभर लोगों का ये आसमान है।
गुजरती है जिंदगी घुटने बटोर कर,
अंदर से छाती लहूलुहान है।
मजे में वो जिसकी ऊपरी कमाई,
बाकी जनता बेचारी परेशान है।
बेचकर चेहरा कुछ बीता रहे दिन,
ऐसे यौवन का क्या सम्मान है।
मीठी-मीठी बात से पेट नहीं भरता,
सबसे ज्यादा किसान परेशान है।
कागज पे दौड़ती कितनी योजनाएँ,
नभ में कल्पना के कितने मकान हैं।
जीवन की जंग तो लड़नी ही पड़ेगी,
फिर भी इस देश पे मुझको गुमान है।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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